Wednesday, October 8, 2025
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Vice President Election 2025: नक्सल हिंसा पीड़ितों की अपील— “बी. सुदर्शन रेड्डी को समर्थन न दें, हमारे ज़ख्मों की अनदेखी न हो”

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज़ है, लेकिन इस बीच नक्सल हिंसा के पीड़ितों का दर्द एक बार फिर सुर्खियों में है। बस्तर शांति समिति (बीएसएस) के बैनर तले नक्सली हिंसा से प्रभावित लोगों ने शुक्रवार को प्रेस वार्ता कर सांसदों से अपील की कि वे विपक्ष के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी का समर्थन न करें।

पीड़ितों ने आरोप लगाया कि बतौर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति रेड्डी ने 2011 में सलवा जुडूम को खत्म करने का जो आदेश दिया था, उसी फैसले ने उनके संघर्ष को कमजोर किया और नक्सलियों का हौसला बढ़ा दिया।

“अगर वह आदेश न होता, तो हमारे प्रियजन आज ज़िंदा होते”

बीएसएस के संयोजक जयराम ने कहा—
“जब सलवा जुडूम को बल मिला था, तब नक्सली लगभग खत्म होने की स्थिति में थे। लेकिन न्यायमूर्ति रेड्डी के आदेश के बाद उनका मनोबल बढ़ गया और वे और अधिक खतरनाक बन गए।”

बस्तर के ग्रामीण शियाराम रामटेक ने भावुक होते हुए कहा,
“अगर रेड्डी ने नक्सलियों के पक्ष में फैसला न दिया होता, तो मेरा बेटा आज जीवित होता। वह सिर्फ़ एक किसान था, लेकिन माओवादियों ने उसका अपहरण कर हत्या कर दी।”

इसी तरह केदारनाथ कश्यप ने बताया कि नक्सलियों ने उनके छोटे भाई की हत्या कर दी, जो पुलिस में कॉन्स्टेबल था। अन्य पीड़ितों ने भी कहा कि नक्सली हिंसा ने किसी को अपाहिज बना दिया, किसी को अंधा, और कई परिवारों को पूरी तरह तबाह कर दिया।

क्या था 2011 का आदेश?

छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सल समस्या से निपटने के लिए सलवा जुडूम अभियान के तहत आदिवासी युवाओं को विशेष पुलिस अधिकारी (SPO) बनाया था। इन्हें स्थानीय स्तर पर “कोया कमांडो” भी कहा जाता था।
जुलाई 2011 में, सर्वोच्च न्यायालय की पीठ—जिसमें न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी भी शामिल थे—ने इस व्यवस्था को अवैध और असंवैधानिक करार दिया। अदालत ने तत्काल आदेश दिया कि इन विशेष पुलिस अधिकारियों से हथियार वापस लिए जाएं और सलवा जुडूम की गतिविधियों पर रोक लगाई जाए।

पीड़ितों की अपील

पीड़ितों का कहना है कि,
“जिस व्यक्ति ने नक्सलियों के हौसले बुलंद किए, अब वही उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार है। यह हमारे लिए बेहद पीड़ादायक है, जैसे हमारे घावों पर नमक छिड़क दिया गया हो। हम किसी पार्टी से जुड़े नहीं हैं, लेकिन सांसदों से अपील करते हैं कि वे पीड़ितों की पीड़ा को समझें और न्याय के पक्ष में खड़े हों।”

चुनावी बहस में नया मोड़

यह अपील उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर चल रही बहस में एक नया आयाम जोड़ सकती है। विपक्ष जहाँ न्यायमूर्ति रेड्डी को संविधान और न्यायपालिका की मजबूती का प्रतीक बता रहा है, वहीं नक्सल हिंसा के पीड़ित उनके फैसले को अपने जीवन के सबसे बड़े दुख का कारण मानते हैं।

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VIKAS TRIPATHI
VIKAS TRIPATHIhttp://www.pardaphaas.com
VIKAS TRIPATHI भारत देश की सभी छोटी और बड़ी खबरों को सामने दिखाने के लिए "पर्दाफास न्यूज" चैनल को लेके आए हैं। जिसके लोगो के बीच में करप्शन को कम कर सके। हम देश में समान व्यवहार के साथ काम करेंगे। देश की प्रगति को बढ़ाएंगे।
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