नई दिल्ली — 20 सितंबर 2025 — अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के ऐक्सिक्यूटिव आदेश के तहत H-1B वीजा आवेदनों पर वार्षिक $100,000 शुल्क लगाने के बाद भारत में राजनीतिक चक्राग्नि फैल गया है। इस फैसले को लेकर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने मुख्यमंत्री मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला और कहा कि यह घटना भारत की विदेश नीति की विफलता का प्रमाण है।
क्या कहा ओवैसी ने — सीधे आरोपों के साथ खुला आक्रोश
ओवैसी ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि H-1B व्यवस्था पर यह बड़ा झटका तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के लाखों परिवारों पर असर डालेगा क्योंकि इन राज्यों के लोगों ने इस वीज़ा व्यवस्था से सबसे अधिक लाभ उठाया है। उनके मुताबिक H-1B आवेदनों का लगभग 71–72% हिस्सा भारतीयों को मिलता है और अमेरिका में भारतीय H-1B धारकों का औसत सालाना वेतन करीब $120,000 है — जो भारत में रेमिटेंस और पारिवारिक आमदनी का बड़ा स्रोत है। ओवैसी ने सवाल उठाया कि इस “जनरल नुकसान” के लिए कौन जिम्मेदार है — ट्रम्प या मोदी सरकार?
ओवैसी ने सीधे कहा — “मेरी शिकायत ट्रम्प से नहीं है; मेरी नाराजगी इस सरकार से है। ‘हाउडी मोदी’ और ‘नमस्ते ट्रम्प’ से आपको क्या हासिल हुआ?” उन्होंने भाजपा की कूटनीतिक उपलब्धियों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि यह फैसला प्रमाण है कि भारत को वैश्विक मंच पर पर्याप्त प्राथमिकता नहीं दी जा रही।
विदेश नीति और आर्थिक असर — विरोधियों के तर्क का सार
ओवैसी सहित विपक्ष ने तीसरी बात कही कि H-1B शुल्क वृद्धि से भारतीय वर्कफ़ोर्स, खासकर IT पेशेवरों के अवसर घटेंगे, जिससे:
अमेरिका से आने वाली रिमिटेंस में गिरावट की आशंका है।
आईटी और सर्विस एक्सपोर्ट पर असर पड़ने से कंपनियों के संचालन-मॉडल में बदलाव आ सकता है।
विपक्षी नेताओं का दावा है कि केंद्र की “दिखावटी कूटनीति” और वैश्विक मंचों पर दिखाए गए सामरिक रिश्तों के बावजूद वास्तविक रक्षा-ओरिएंटेड व आर्थिक हितों की सुरक्षा में कमी रही — और इसका खामियाजा आम भारतीय झेलेंगे।
सरकार-स्तरीय प्रतिक्रिया और औद्योगिक चिंता
केंद्रीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि इस फैसले के “मानवतावादी निहितार्थ” हो सकते हैं और पूरी परिस्तिथियों का अध्ययन किया जा रहा है; भारत ने अमेरिकी पक्ष से प्रभावों को संबोधित करने की आशा व्यक्त की है।
इंडस्ट्री बोडीज़ ने भी सीधे चिंता जताई है — NASSCOM समेत आईटी संगठन कहते हैं कि $100,000 जैसी भारी फीस से ऑनशोर परियोजनाओं और भारतीय फर्मों के वैश्विक संचालन पर “गंभीर व्यवधान” आ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ मल्टीनैशनल कंपनियाँ ऑनशोर हायरिंग बढ़ाने या ऑफशोर मॉडल में बदलाव पर विचार कर सकती हैं, जिससे भारतीय पेशेवरों के लिये अमेरिका में अवसर घटेंगे।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ — विपक्ष का एक स्वर
ओवैसी के अलावा कई विपक्षी नेता — राहुल गांधी, अखिलेश यादव और अन्य — भी केंद्र सरकार से कड़ा सवाल कर रहे हैं कि ऐसी बड़ी कूटनीतिक और आर्थिक चोट पर क्या सार्थक कार्रवाई होने जा रही है। राहुल गांधी ने इस मुददे को लेकर पहले से ही प्रधानमंत्री पर “कमज़ोर नेतृत्व” का आरोप दोहराया है और विपक्ष मिलकर जवाबदेही की माँग कर रहा है।
क्या विकल्प हैं — विशेषज्ञ क्या सुझा रहे हैं?
विशेषज्ञ और नीति विश्लेषक तात्कालिक व दीर्घकालिक दोनों तरह के कदम सुझा रहे हैं:
1.तुरंत कूटनीतिक संवाद — उच्चस्तरीय बातचीत के जरिये अमेरिका को H-1B नीतियों के दुष्परिणाम समझाना और भारतीय परीस्थितियों पर रियायत की माँग करना।
2.मार्केट विविधीकरण — यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और मध्य-पूर्व जैसे अन्य गंतव्यों में मैकेनिज्म तेज़ करना ताकि प्रवासी विकल्प बरकरार रहें।
3.घरेलू अनुभाग मज़बूत करना — भारतीय आईटी व टेक इकोसिस्टम को और समर्थन देकर स्थानीय नौकरियाँ बढ़ाना व रिमोट-वर्क मॉडल को बढ़ावा देना।
4.री-स्किलिंग और स्टार्ट-अप समर्थन — कर्मियों का कौशल उन्नयन और SME/startup-friendly नीतियों से दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता बढ़ाना।
राजनीतिक परिदृश्य — अगले कदम क्या रहेंगे?
यह मामला अगले कुछ दिनों में भारत की संसद, मीडिया और राजनैतिक बहस का बड़ा एजेंडा बन सकता है। विपक्षी दल सरकार से मांग कर रहे हैं कि वह तत्काल संवाद शुरू करे, प्रभावित नागरिकों के लिये राहत उपाय सुझाए और आईटी कंपनियों के समक्ष आने वाली समस्याओं को दूर करने हेतु पैकेज तैयार करे। सरकार की तत्क्षण और ठोस प्रतिक्रिया भविष्य की राजनीतिक बिफोर व आर्थिक असर दोनों तय करेगी।
ट्रम्प प्रशासन का H-1B शुल्क बढ़ाने का फैसला तकनीकी और आर्थिक दोनों मायनों में भारत के लिये बड़ा झटका साबित हो सकता है। असदुद्दीन ओवैसी और अन्य विपक्षी नेताओं का आरोप है कि यह समस्या केवल अमेरिकी नीति का नतीजा नहीं है, बल्कि केन्द्र की कूटनीतिक प्राथमिकताओं व रणनीति की विफलता भी दिखाती है। अब वक्त है कि सरकार त्वरित कूटनीतिक पहल, उद्योग-समर्थन और घरेलू नीतिगत उपायों के जरिये नुकसान को सीमित करे — वरना प्रभाव सीधे भारतीय परिवारों और अर्थव्यवस्था पर देखा जाएगा।














