Wednesday, October 8, 2025
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अमित शाह ने जोधपुर में दिव्यांगों के लिए नए अध्याय का ऐलान किया — “विकलांग नहीं, दिव्यांग” से बदलाव की बात दोहराई

जोधपुर, (रविवार) — केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जोधपुर के रामराज नगर में पारसमल बोहरा नेत्रहीन महाविद्यालय के भवन-शिलान्यास समारोह में भाग लेते हुए कहा कि राज्य में दिव्यांगों के लिए समर्पित यह पहला महाविद्यालय एक महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन का संकेत है। उन्होंने कहा कि समाज में दिव्यांगों को दया की दृष्टि से देखने की जगह उनकी “दिव्यता” को पहचानना और उन्हें हर क्षेत्र से जोड़ना अब ज़रूरी है।


कार्यक्रम का स्वरूप और महत्त्व

इस कार्यक्रम में स्थानीय जन-प्रतिनिधि, शिक्षाविद् तथा दिव्यांग समुदाय के प्रतिनिधि उपस्थित थे। भवन-शिलान्यास का उद्देश्य न केवल नेत्रहीनों के लिए उच्च शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना है, बल्कि एक ऐसा समेकित मंच तैयार करना भी है जहाँ शैक्षिक सुविधाओं के साथ-साथ व्यवहारिक प्रशिक्षण, आत्म-रोज़गार और सामाजिक समायोजन पर भी काम किया जा सके।


अमित शाह के मुख्य बिंदु

अमित शाह ने अपने संबोधन में कहा:

“जब समाज में दिव्यांगों को दया की जगह दिव्यता का प्रतीक मानने की शुरुआत होती है तब उनके लिए काम होता है।”

उन्होंने बताया कि 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शब्दावली के परिवर्तन के माध्यम से विकलांगों के लिए ‘विकलांग’ के स्थान पर ‘दिव्यांग’ शब्द के उपयोग की पहल की थी और यह बदलाव दृष्टिकोण में परिवर्तन का आवाह्न है।

शाह ने कहा, “प्रधानमंत्री ने दिव्यांगों में आत्मसम्मान और पहचान की एक नई भावना जगाई है — आत्मनिर्भरता की दिशा में उनका भरोसा उदाहरणीय है।”

उन्होंने यह भी कहा कि ईश्वर ने हर किसी को कुछ विशेष उपहार दिए होते हैं; कुछ लोगों को जो ‘दिव्यता’ मिली है, उसे पहचान कर समाज और राष्ट्र से जोड़ना हमारी जिम्मेदारी है।


क्या बदलेगा — नीति और जमीन पर असर

शाह के बयानों में नीतिगत दृष्टिकोण की परछाईं साफ दिखी — न केवल भाषा में संवेदनशीलता बल्कि व्यावहारिक समावेशन की भी बात की गई:

शैक्षिक पहुँच: ऐसे महाविद्यालयों से नेत्रहीन व अन्य दिव्यांगों को उच्च शिक्षा, प्रशिक्षण और कंप्यूटिंग/बेसिक नौकरी कौशल सिखाने के अवसर बढ़ेंगे।

रोज़गार और स्वावलंबन: महाविद्यालयों को स्थानीय उद्योगों व स्वरोज़गार योजनाओं के साथ जोड़कर विद्यार्थियों के लिये रोजगार-मेलों और इंटर्नशिप की व्यवस्था पर ज़ोर मिलेगा।

सामुदायिक स्वीकार्यता: ‘दिव्यांग’ शब्दावली और भावनात्मक बदलाव समाज में समानता और आत्म-सम्मान बढ़ाने में सहायक होगा।

इन्फ्रास्ट्रक्चर: ऐसे शैक्षणिक संस्थान पहुंच, ब्रेल/ऑडियो-लाइब्रेरी, सहायक उपकरण और डिजिटल सुलभता के मानदंड अपनाएंगे।


आगे की चुनौतियाँ और अपेक्षित कदम

अमित शाह ने जहाँ तारीफ़ और मान्यता दी, वहीं इस क्षेत्र की कुछ चुनौतीओं पर भी अप्रत्यक्ष तौर पर संकेत दिया — जैसे व्यापक पहुंच, प्रशिक्षित स्टाफ़, सहायक तकनीक का महत्तव और राज्य-स्तरीय समन्वय।
सरकारी स्तर पर अपेक्षित कदमों में शामिल हो सकते हैं: विशेष शिक्षण संवर्धन, क्यूरेटेड ट्रेनिंग-प्रोग्राम, दिव्यांगों के रोजगार हेतु लक्षित भर्ती योजनाएँ, तथा महाविद्यालयों के साथ–साथ समुदाय-आधारित री-इंटिग्रेशन पहल।


स्थानीय प्रतिक्रिया और सामाजिक मायने

कार्यक्रम में उपस्थित नागरिकों और दिव्यांगों के परिजनों ने महाविद्यालय की पहल को स्वागत योग्य बताया। कई लोगों ने कहा कि यह न केवल शैक्षिक अवसर देगा बल्कि एक सकारात्मक और गौरवपूर्ण पहचान भी देगा — जिसे वे वर्षों से चाहते रहे हैं।

जो निर्णय आज लिये जा रहे हैं — भाषा, नीतियाँ और संस्थागत निवेश — मिलकर दिव्यांगों के लिए समावेशी और गरिमामय भविष्य की नींव रख सकते हैं। अमित शाह का यह जोर कि “दिव्यता” को पहचान कर उसे राष्ट्र से जोड़ना समाज की ज़िम्मेदारी है, न केवल प्रतीकात्मक है बल्कि व्यवहारिक नीतियों के लिये भी मार्गदर्शक बन सकता है।

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