
Mukesh Rajput Farrukhabad BJP MP Bhimrao Ambedkar controversy: गुरुवार को संसद परिसर में अप्रत्याशित घटना घटी जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी बहस धक्का-मुक्की में बदल गई। इस घटना में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के दो सांसद घायल हो गए। इनमें से एक नाम मुकेश राजपूत का है। बीजेपी ने इस घटना के लिए कांग्रेस पर आरोप लगाया है।
संसद परिसर में क्या हुआ?
संसद भवन के गेट पर एनडीए और कांग्रेस के सांसदों के बीच जोरदार बहस के बाद धक्का-मुक्की हुई। बीजेपी का दावा है कि इस दौरान कांग्रेस नेताओं ने धक्का दिया, जिससे लोकसभा सदस्य मुकेश राजपूत और प्रताप सारंगी घायल हो गए। वहीं, पार्टी की राज्यसभा सांसद फिल्हा कोन्याक ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने उनके साथ असहज व्यवहार किया।
मुकेश राजपूत का परिचय
- क्षेत्र: मुकेश राजपूत उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- कार्यकाल: वह तीसरी बार लोकसभा सांसद बने हैं और अपने क्षेत्र की जनता के लोकप्रिय नेता माने जाते हैं।
- समाज में पहचान: मुकेश राजपूत उत्तर प्रदेश में लोध समुदाय के प्रमुख नेताओं में से एक हैं। फर्रुखाबाद सहित राज्य की कई लोध बाहुल्य सीटों पर उनका प्रभाव है।
राजनीतिक सफर की झलक
- 2014:
मोदी लहर के दौरान मुकेश राजपूत ने फर्रुखाबाद सीट से चुनाव लड़ा और तत्कालीन सांसद एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को बड़े अंतर से हराया। उनकी इस जीत ने उन्हें एक उभरते हुए नेता के रूप में पहचान दिलाई। - 2019:
पार्टी ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताते हुए टिकट दिया। इस चुनाव में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार मनोज अग्रवाल और सलमान खुर्शीद को हराकर अपनी जीत की हैट्रिक पूरी की। - 2024:
इस चुनाव में मुकाबला बेहद कड़ा था। समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार नवल किशोर शाक्य ने उन्हें कड़ी टक्कर दी, लेकिन मुकेश राजपूत ने मात्र 2,000 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की।
फर्रुखाबाद में उनकी लोकप्रियता
मुकेश राजपूत की गिनती एक जमीन से जुड़े नेता के रूप में होती है। अपने सरल स्वभाव और सामाजिक कार्यों के जरिए उन्होंने क्षेत्र में मजबूत जनाधार तैयार किया है।
वर्तमान घटना पर सवाल
संसद परिसर में हुई धक्का-मुक्की ने कई सवाल खड़े किए हैं। यह मामला न केवल सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाता है, बल्कि सांसदों के बीच बढ़ती राजनीतिक कटुता को भी उजागर करता है।
अब देखना यह है कि इस घटना के बाद संसद की कार्यवाही और राजनीतिक समीकरणों पर क्या असर पड़ता है।