बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के पटना के जेपी गंगा पथ पर समर्थकों और अपने भांजे के साथ रात भर नाचने का वायरल वीडियो राजनीतिक गलियारों में बहस का विषय बन गया है। केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने इस घटना को लेकर तेजस्वी पर निशाना साधते हुए कहा कि यह सुशासन की असली तस्वीर है — और जो कुछ वे देख रहे हैं, उससे उन्हें शासन की दशा का अंदाजा हो गया होगा।
मांझी ने बयान दे कर कहा कि अगर लालू राज होता तो ऐसे युवाओं को “गुंडों” द्वारा उठाकर मुख्यमंत्री आवास पर ही कट्टे पर डिस्को करवाया जाता। उन्होंने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा कि वर्तमान में बिहार में सुशासन है और इसके बावजूद तेजस्वी बार-बार बेबुनियाद आरोप लगाते हैं।
वायरल वीडियो की पृष्ठभूमि में यह घटना 1 सितंबर की रात की बताई जा रही है, जब वोटर अधिकार यात्रा के समापन के बाद तेजस्वी और उनके समर्थक जेपी गंगा पथ पर नाचते दिखे। वीडियो में तेजस्वी युवाओं के साथ डांस मूव्स की नकल करते नजर आते हैं और यह फुटेज सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा किया गया — कुछ लोग इसे मनोरंजक मानकर पसंद भी कर रहे हैं, तो राजनीतिक विरोधियों ने इसे नकारात्मक रूप में लिया।
राजनीतिक संदेश और तर्क
जीटन राम मांझी ने इस मौके पर तेजस्वी को नसीहत भी दी कि उन्हें समझना चाहिए कि बिहार के लिए आखिर एनडीए क्यों आवश्यक है। मांझी का तर्क था कि सुशासन के सन्दर्भ में जनता वोट देकर निर्णय कर रही है और इसी आधार पर एनडीए की सरकार की उपलब्धियों का श्रेय दिया जाना चाहिए।
तेजस्वी की पृष्ठभूमि और सवाल
तेजस्वी यादव हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 16 दिनों की वोटर अधिकार यात्रा में भी शामिल रहे और उन्होंने वोट चोरी के आरोप भी लगाए हैं। उनका मध्यरात्री का उत्सव-मूड और सोशल मीडिया पर वायरल हुआ वीडियो विपक्ष और सरकार के बीच सार्वजनिक बहस का नया बहाना बन गया है।
विश्लेषक क्या कह रहे हैं
राजनीतिक विश्लेषक इसे चुनावी रणनीतियों और छवि-निर्माण का हिस्सा मानते हैं — जहाँ एक ओर युवाओं से जुड़ने की कोशिशें हैं, वहीं विरोधी शिफ्ट होकर इसे अनुशासन और सार्वजनिक छवि पर सवालों के रूप में पेश कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर वायरल फुटेज राजनीतिक संदेशों को तीखा बनाते हैं और चुनावी माहौल को और गरम करते हैं।
मामला सिर्फ एक वायरल वीडियो से आगे निकलकर राजनीतिक विमर्श और चुनावी युद्धनीतियों का हिस्सा बन गया है। मांझी के तीखे व्यंग्य से यह स्पष्ट है कि सियासत में हर छोटी घटना भी बड़े विमर्श और सार्वजनिक प्रत्यय को प्रभावित कर सकती है — और अब यह जनता और मीडिया पर निर्भर करेगा कि वे इस घटना को कैसे परिभाषित करते हैं।





 
                                    










