
उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी नई संगठनात्मक टीम का ऐलान किया, और इसके साथ ही राजनीति के व्यंग्यबाणों की बारिश भी शुरू हो गई। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ताओं ने इस लिस्ट को देखकर “सबका साथ, सबका विकास” के नारे को व्यंग्य में “कुछ का साथ, बाकी का वनवास” बना दिया।
सपा नेता राजकुमार भाटी ने तंज कसते हुए लिखा, “हो गई हिंदू एकता! 75 में 27 ब्राह्मण, 15 राजपूत, 08 बनिया, 08 ओबीसी… दलित-पिछड़े-वंचितों की चिंता मत करो, मोदी जी और योगी जी हैं ना!”
इसी कड़ी में सपा प्रवक्ता आईपी सिंह ने भी बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग पर कटाक्ष करते हुए कहा, “बीजेपी का ‘सबका साथ, सबका विकास’ अब ‘कुछ खास का साथ, बाकी का उपहास’ बन चुका है!”
लिस्ट में ‘सामाजिक संतुलन’ या ‘सांप्रदायिक समीकरण’?
बीजेपी ने 98 जिलों में से 68 जिलों में अपने नए जिलाध्यक्षों का ऐलान किया। पर दिलचस्प बात ये रही कि इस लिस्ट को देखकर विपक्ष ने इसे “जातिगत आरती” करार दिया।
नई सूची में, ब्राह्मण (27), राजपूत (15), बनिया (08), ओबीसी (08) तो भरपूर मात्रा में हैं, लेकिन दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों की खोज में राजनेताओं को “चंद्रयान-4” भेजना पड़ सकता है!
“पार्टी विद अ डिफरेंस” या “पार्टी विद द सेम पैटर्न”?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी ने यह सूची अपनी कोर वोटर बेस को मजबूत करने के लिए तैयार की है। लेकिन सपा नेताओं को इसमें वही पुराना खेल दिखा।
सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा गरमाया रहा। एक यूजर ने कटाक्ष किया, “भाजपा ने सूची जारी की है या किसी रॉयल फैमिली मीटिंग का निमंत्रण?” वहीं, दूसरे ने लिखा, “दलित और मुस्लिम तो शायद वेटिंग लिस्ट में होंगे!”
तो क्या कहती है बीजेपी?
बीजेपी नेताओं का कहना है कि यह सूची “क्षमता और संगठन में काम करने वालों” के आधार पर तैयार की गई है, न कि जातिगत समीकरण के आधार पर। पर सपा नेताओं ने यह कहकर बीजेपी की दलील को खारिज कर दिया कि, “फिर भी संयोगवश जातीय बैलेंस हमेशा एक ही दिशा में क्यों झुका होता है?”
2024 की चुनावी रणनीति का ट्रेलर?
राजनीति में संख्याओं की अपनी अहमियत होती है। 2024 का चुनाव नजदीक है, और बीजेपी का यह जिला नेतृत्व उसी दिशा में पहला कदम माना जा रहा है। लेकिन सपा और विपक्षी दल इस सूची को बीजेपी की “सोशल इंजीनियरिंग” से ज्यादा “सोशल एक्सक्लूजन” बता रहे हैं।
अब देखना यह होगा कि इस मुद्दे पर जनता की प्रतिक्रिया कैसी रहती है। क्या यह “सबका साथ, सबका विकास” का नया स्वरूप है, या फिर वही पुराना “कुछ का साथ, बाकी का वनवास”?

VIKAS TRIPATHI
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