तियानजिन, चीन — शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (SCO) समिट के मंच पर बुधवार को अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का एक ध्यान खींचने वाला दृश्य सामने आया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और मेजबान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक साथ खड़े दिखे। ग्रुप फोटो सेशन के दौरान सभी सदस्य नेताओं ने एक मंच साझा किया — और फोटो क्षण ने वैश्विक मीडिया का ध्यान खींचा।
जब पीएम मोदी मंच पर पहुंचे तो शी जिनपिंग ने उनका हाथ मिलाकर स्वागत किया; उनके साथ शी की पत्नी पेंग लियुअन भी मौजूद रहीं। फोटो सेशन के बाद मोदी और शी तथा पेंग लियुअन के बीच गर्मजोशी भरा अभिवादन देखा गया — दोनों नेताओं के चेहरे पर स्पष्ट प्रसन्नता थी। तस्वीरों में मोदी और पुतिन के बीच तियानजिन के मंच पर ताजिकिस्तान और किर्गिज़स्तान के राष्ट्राध्यक्ष भी नज़ारों में रहे, जो समिट की बहुराष्ट्रीय उपस्थिति को रेखांकित करता है।
समित के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने चीनी राष्ट्रपति से मुलाकात के अलावा मालदीव, नेपाल सहित कई छोटे पड़ोसी देशों के नेताओं से भी द्विपक्षीय वार्तालाप किए। यह मोदी का चीन का पहला औपचारिक दौरा सात वर्षों के बाद है, और दस महीनों के भीतर शी जिनपिंग के साथ यह दूसरी बहस — पिछली बार वे ब्रिक्स 2024 (कज़ान, रूस) में मिले थे।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की उच्चस्तरीय मुलाकातें वैश्विक रणनीतिक संतुलन के लिए माइलस्टोन साबित हो सकती हैं। हालांकि, वे यह भी कहते हैं कि भारत, रूस और चीन के बीच लंबे समय से चले आ रहे विरोधाभास और अनसुलझे कोर मुद्दे — जैसे सीमाएँ, सुरक्षा चिंताएँ और पाकिस्तान के प्रति चीन का रुख — तत्कालिक रूप से समाप्त नहीं होंगे।
समिट पर एक और बड़ी पृष्ठभूमि यह थी कि हाल के दिनों में अमेरिका द्वारा भारत पर प्रस्तावित टैरिफ नीतियों और रूस से सस्ते तेल की खरीद को लेकर तनाव चर्चा का केंद्र रहे। ट्रम्प प्रशासन के 50% तक के टैरिफ प्रस्ताव और ऊर्जा खरीद के मुद्दे ने इस समिट को और भी संवेदनशील बना दिया, क्योंकि पश्चिमी चिंताएँ भारत–रूस ऊर्जा रिश्ते की बढ़ती नजदीकी से जुड़ी हैं। भारत ने इन आरोपों का मुकाबला करते हुए कहा है कि रूस से खरीद वैश्विक बाजार की स्थितियों पर आधारित है और उसने इस खरीद के माध्यम से वैश्विक तेल कीमतों को स्थिर रखने में योगदान दिया।
कूटनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि अगर इस तरह की बैठकों के बाद प्रमुख राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों पर ठोस प्रगति होती है — उदाहरण के लिए चीन द्वारा पाकिस्तान को दी जा रही सहयोगात्मक सहायता में बदलाव या सीमा विवादों का समाधान — तो यह क्षेत्रीय शांति और आर्थिक स्थिरता के लिए सकारात्मक संकेत होगा। दूसरी ओर, अगर केवल तस्वीरों तक ही सीमित रहकर वास्तविक मायने में नीतिगत सार्थकता न निकले, तो प्रभाव सीमित रह सकता है।
तियानजिन से निकलकर इस मुलाकात ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया कि बहुध्रुवीय कूटनीति अब और अधिक जटिल और पारस्परिक रूप से जुड़ी हुई है। SCO के मंच पर खिंची गई यह फोटो निस्संदेह प्रतीकात्मक है — पर असली परीक्षा तो आने वाले कूटनीतिक कदमों और नीतिगत निर्णयों की होगी।