नोएडा, बहलोलपुर। कुश्ती जैसे पारंपरिक खेल को नई ऊर्जा और दिशा देने में सतपाल यादव की भूमिका आज केवल एक आयोजक या संरक्षक की नहीं रही, बल्कि वे आज की युवा पीढ़ी के लिए एक देवदूत के रूप में सामने आए हैं। शुक्रवार को बहलोलपुर स्थित भोला पहलवान अखाड़े में आयोजित अंडर-23 जिला स्तरीय कुश्ती ट्रायल में सतपाल यादव, जो कि बुद्ध नगर कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष हैं, बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। इस अवसर पर उन्होंने खिलाड़ियों के मनोबल को न सिर्फ शब्दों से, बल्कि अपने कर्मों से भी ऊँचाई दी।
सतपाल यादव ने स्पष्ट शब्दों में कहा—“कुश्ती केवल एक खेल नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, परंपरा और अनुशासन का जीवंत प्रतीक है। बहलोलपुर की यह भूमि अनेक महान पहलवानों की कर्मभूमि रही है और मुझे गर्व है कि यहां से निकले युवा भविष्य में भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गौरवांवित करेंगे।”
निःशुल्क पंजीकरण से बच्चों के चेहरे खिले
इस ट्रायल प्रतियोगिता में जहाँ आम तौर पर प्रत्येक प्रतिभागी से ₹200 की पंजीकरण फीस ली जाती है, वहीं सतपाल यादव ने सभी बच्चों की एंट्री फीस स्वयं वहन करते हुए माफ करवा दी। उन्होंने पूरी एकमुश्त राशि अखाड़े के गुरु चतर सिंह को सौंपी, जिससे कोई भी बच्चा आर्थिक कारणों से इस मौके से वंचित न रह जाए।
प्रतिभागियों और उनके परिजनों ने इस मानवीय पहल के लिए सतपाल यादव का हृदय से आभार प्रकट किया। एक अभिभावक ने कहा,“आजकल जहां खेल भी एक खर्चीला सपना बन गया है, वहाँ सतपाल जी जैसे लोग असली रहनुमा हैं। उन्होंने बच्चों को बिना किसी बोझ के प्रतियोगिता में भाग लेने का मौका दिया।”
हर जरूरतमंद खिलाड़ी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर
यह पहला मौका नहीं है जब सतपाल यादव ने पहलवानों के लिए अपना दिल और दरवाज़ा खोला हो। इससे पहले भी वे कई प्रतिभाशाली पहलवानों को व्यक्तिगत रूप से ₹1 लाख तक की आर्थिक सहायता प्रदान कर चुके हैं। उनका मानना है कि “पैसे की कमी किसी भी खिलाड़ी के सपनों में बाधा नहीं बननी चाहिए।”
उन्होंने जानकारी दी कि वे हर साल एक बड़ा दंगल आयोजित करते हैं, जिसमें ₹35 से ₹40 लाख की पुरस्कार राशि वितरित की जाती है। यह आयोजन न केवल खिलाड़ियों को मंच देता है, बल्कि ग्रामीण और शहरी प्रतिभाओं को जोड़कर एक समावेशी खेल संस्कृति को जन्म देता है।
कुश्ती को जीवन दर्शन मानते हैं सतपाल
सतपाल यादव का मानना है कि कुश्ती केवल ताकत का प्रदर्शन नहीं, बल्कि संयम, अनुशासन और आत्मबल का भी संगम है। वे खुद भी पहलवानी संस्कृति से जुड़े रहे हैं और अपने अनुभव का लाभ अब वे युवा खिलाड़ियों को दे रहे हैं।
उन्होंने बच्चों से कहा:
“मेहनत करो, ईमानदारी से अखाड़े में पसीना बहाओ, बाकी जिम्मेदारियाँ हम उठाएंगे।”
समापन
भोला पहलवान अखाड़े में हुई इस प्रतियोगिता ने सिर्फ ट्रायल का मंच नहीं दिया, बल्कि खिलाड़ियों के दिलों में एक भरोसा भी जगाया— कि जब तक सतपाल यादव जैसे मार्गदर्शक हैं, तब तक उनका संघर्ष अकेला नहीं होगा।
यह आयोजन एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि जब नेतृत्व सेवा भाव से आता है, तो वह केवल नेतृत्व नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने वाला आंदोलन बन जाता है।