Wednesday, November 26, 2025
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मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (SIR) में दबाव — कई राज्यों में BLO की मौत, सियासी उठापटक तेज

देश के नौ राज्यों व तीन केंद्रशासित प्रदेशों में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान बीएलओ (ब्लॉक लेवल ऑफिसर) पर काम का अत्यधिक दबाव सामने आया है। कई राज्यों से बीएलओ की अचानक मौत की खबरें आ रही हैं, जिससे चुनाव प्रक्रिया और चुनाव आयोग दोनों पर सवाल उठे हैं। विपक्षी दल और कुछ राज्य सरकारें SIR प्रक्रिया स्थगित करने की मांग कर रही हैं।

पश्चिम बंगाल के कृष्णानगर में शनिवार को एक महिला बीएलओ रिंकू तरफदार (54) ने कथित तौर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। टीएमसी के बयान के अनुसार रिंकू चोपरा दुई पंचायत के बूथ नंबर 201 की बीएलओ थीं और वह चोपरा के बंगालजी स्वामी विवेकानंद विद्या मंदिर में पार­t-टाइम शिक्षक भी थीं। उनके सुसाइड नोट में बताया गया है कि उन्होंने SIR की प्रक्रिया से जुड़े दबाव को मौत का कारण बताया है। परिवार ने कहा है कि वह कृष्णानगर की छठी मंजिल पर रहती थीं; शव सुबह बरामद हुआ।

राज्य सरकार की प्रतिक्रिया
पश्चिम बंगाल सरकार ने मृत बीएलओ के परिवार को 2-2 लाख रुपये मुआवजा देने का ऐलान किया है और कहा है कि जो बीएलओ काम के दौरान बीमार पड़ेंगे, उन्हें 1 लाख रुपये दिए जाएंगे। वहीं तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर SIR प्रक्रिया को स्थगित करने की मांग की है। ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया पर भी दावा किया था कि बंगाल में 28 बीएलओ इसी दबाव में अपनी जान गंवा चुके हैं।

निर्देश और आरोप—देशव्यापी घटनाएँ
यह समस्या केवल बंगाल तक सीमित नहीं है — मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और केरल से भी बीएलओ की मौत की खबरें आई हैं। खबरों में मध्य प्रदेश के दतिया व झाबुआ, गुजरात के गिर सोमनाथ और खेड़ा, राजस्थान के सवाई माधोपुर व जयपुर तथा केरल के कन्नूर का नाम लिया गया है। कुछ मामलों में परिवारों व सोशल पोस्टों का कहना है कि मौत का कारण SIR का अत्यधिक दबाव है; गुजरात के एक बीएलओ के सुसाइड नोट में भी कहा गया है — “मैं अब SIR का काम नहीं कर सकता।”

सियासी निहितार्थ और चुनाव आयोग की भूमिका
बीएलओ की मौतों को लेकर विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। ममता बनर्जी ने आरोप लगाया है कि तीन साल में पूरा होने वाली मतदाता सूची शुद्धिकरण की प्रक्रिया अब महज तीन महीने में समाप्त करने का दबाव बनाया जा रहा है, जिससे काम का बोझ असहनीय हो गया है। चुनाव आयोग ने संबंधित राज्यों से रिपोर्ट तलब की है और घटनाओं की जांच के निर्देश दिए जाने की जानकारी मिल रही है।

स्थानीय कार्यबल की प्रतिक्रिया
केरल में बीएलओयों ने सोमवार को हड़ताल का ऐलान किया है; अन्य जगहों पर भी कुछ BLO कार्यकर्ता काम के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं और समयसीमा व काम के बंदोबस्त को लेकर स्पष्ट निर्देशों की मांग कर रहे हैं।

विश्लेषण—क्या कारण हैं और क्या समाधान संभव हैं?
विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रकिया में घर-घर जाकर गणना प्रपत्र बाँटना और वापस एकत्र करना सबसे अहम कार्यों में से है। चुनाव आयोग द्वारा दिए निर्धारित समय के भीतर यह काम तेजी से पूरा करना होता है। हाल में जहाँ कर्मचारियों की कमी, प्रशिक्षण अगाधता, एवं तय समयसीमा कड़ी रही है, वहीं निजी जिम्मेदारियों और मनोवैज्ञानिक दबाव ने कार्यरत कर्मियों की हालत और नाज़ुक कर दी है। विशेषज्ञों और चुनाव प्रशासकों से कहा जा रहा है कि पारदर्शी समयसीमा, पर्याप्त समयविरोधी व्यवस्था, बीएलओज के लिए मानसिक स्वास्थ्य सहायता, तथा आवश्यक तकनीकी और मानव संसाधन बढ़ाने पर तत्काल विचार करने की जरूरत है।

आगे का रास्ता
पार्टी नेताओं की मांगें, राज्य सरकारों के मुआवजे और चुनाव आयोग की रिपोर्ट के बाद अब देखना होगा कि SIR प्रक्रिया में संशोधन, समयसीमा में ढील, या अतिरिक्त कर्मचारियों की व्यवस्था की जाती है या नहीं। वहीं बीएलओ के परिवारों और सहयोगियों का कहना है कि काम के भारी दबाव की वजह से यह एक गम्भीर प्रशासनिक और मानवीय संकट बन चुका है —जिसका शीघ्र और संवेदनशील समाधान जरूरी है।

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VIKAS TRIPATHI
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