Sunday, August 10, 2025
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पुणे पोर्श हादसा: किशोर न्याय बोर्ड ने आरोपी को नाबालिग मानने का फैसला किया, वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने की पुलिस की याचिका खारिज

महाराष्ट्र के पुणे में पिछले वर्ष हुए पोर्श कार हादसे में एक बड़ा कानूनी मोड़ सामने आया है। किशोर न्याय बोर्ड ने पुणे पुलिस की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें 17 वर्षीय आरोपी पर वयस्क के तौर पर मुकदमा चलाने की मांग की गई थी। बोर्ड ने यह स्पष्ट किया है कि आरोपी पर किशोर के रूप में ही मुकदमा चलाया जाएगा।


क्या था मामला?

यह हादसा 19 मई 2024 को पुणे के कोरेगांव पार्क क्षेत्र में हुआ था, जब तेज रफ्तार पोर्श कार ने दो मोटरसाइकिल सवार आईटी प्रोफेशनल्स—अनीश अवधिया और अश्विनी कोस्टा—को टक्कर मार दी थी। मौके पर ही दोनों की मौत हो गई थी। इस हादसे ने देशभर में आक्रोश पैदा कर दिया था, खासकर तब जब आरोपी को बेहद नरम जमानत शर्तों पर रिहा कर दिया गया।


विवादित जमानत और निबंध लिखने की शर्त

हादसे के कुछ ही घंटों के भीतर आरोपी किशोर को सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने, शराब के प्रभाव से दूर रहने, और परामर्श सत्रों में भाग लेने जैसी शर्तों पर जमानत दे दी गई थी। इस फैसले की चौतरफा आलोचना हुई, जिसके बाद तीन दिन बाद आरोपी को एक सुधार गृह भेजा गया


हाईकोर्ट का हस्तक्षेप

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 25 जून 2024 को इस मामले में दखल देते हुए किशोर न्याय बोर्ड के आदेश को अवैध बताया और आरोपी की तत्काल रिहाई का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के प्रावधानों का पूर्ण अनुपालन किया जाना चाहिए, चाहे मामला कितना भी गंभीर क्यों न हो।


पुलिस का तर्क और बोर्ड का निर्णय

पुणे पुलिस ने आरोपी पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने की मांग करते हुए कहा था कि यह जघन्य अपराध है, जिसमें मृत्यु के अलावा साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ के भी आरोप हैं। लेकिन किशोर न्याय बोर्ड ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि आरोपी की आयु और कानून के अंतर्गत उसकी स्थिति को देखते हुए, मुकदमा किशोर के रूप में ही चलाया जाएगा।


न्याय, कानून और जनभावनाओं के बीच संतुलन की परीक्षा

यह मामला कानूनी प्रक्रिया और सामाजिक अपेक्षाओं के बीच संतुलन की एक बड़ी परीक्षा बन गया है। जहां एक ओर मृतकों के परिजनों और नागरिक समाज में न्याय की मांग है, वहीं दूसरी ओर अदालतें और न्याय बोर्ड यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि किशोरों के अधिकारों का उल्लंघन न हो। आने वाले समय में यह केस किशोर कानून की व्याख्या और उसकी सीमाओं को लेकर एक मिसाल बन सकता है।


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