नई दिल्ली (अपडेट) — प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रविवार शाम के राष्ट्र-भाषण में घोषित जीएसटी की नई दरों और सरकार के कहे अनुसार कल से शुरू हो रहे “GST बचत उत्सव” पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अन्य विपक्षी नेता प्रधानमंत्री के प्रस्तावित लाभों को मामूली पैचवर्क कह रहे हैं और सरकार पर पिछले दशकों में कर व नीतिगत फैसलों से जनता को हुए नुकसान के लिए जवाबदेही मांग रहे हैं।
कांग्रेस का हमला — “मामूली पट्टी से बड़े घाव नहीं भरते”
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री के भाषण पर कटाक्ष करते हुए लिखा: “नौ सौ चूहे खाकर, बिल्ली हज को चली!” खड़गे का तर्क यह है कि केंद्र ने 2014–2024 के दौरान अलग-अलग स्लैब और जटिल कर व्यवस्था के माध्यम से लाखों करोड़ वसूल कर लिए — और अब मामूली ₹2.5 लाख करोड़ के “बचत” दावे कर के जनता को संवेदनात्मक राहत देने का प्रयत्न कर रहा है। उन्होंने कहा कि पहले दाल-चावल-पेंसिल-किताब-इलाज-ट्रैक्टर तक पर GST लगाया गया और जनता को हुए नुकसान की माँग सजा देनी चाहिए।
नौ सौ चूहे खाकर, बिल्ली हज को चली !
.@narendramodi जी,
आपकी सरकार ने कांग्रेस के सरल और कुशल GST के बजाय, अलग-अलग 9 स्लैब से वसूली कर “गब्बर सिंह टैक्स” लगाया और 8 साल में ₹55 लाख करोड़ से ज़्यादा वसूले।
अब आप ₹2.5 लाख करोड़ के “बचत उत्सव” की बात कर के जनता को गहरे घाव… pic.twitter.com/t7Z64wL67S
— Mallikarjun Kharge (@kharge) September 21, 2025
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने भी प्रधानमंत्री पर निशाना साधा कि उन्होंने जीएसटी सुधारों पर किए गये निर्णयों का पूरा श्रेय स्वयं को देने की कोशिश की, जबकि ये संवैधानिक निकाय — GST Council — के सहयोग से ही होते हैं। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनैथ ने कहा कि भाषण में दिखावा ज़्यादा और आत्म-आलोचना कम थी; उनका तर्क था कि प्रधानमंत्री को जनता से माफी माँगनी चाहिए थी।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रमुख अजय राय ने जीएसटी के साथ वोट-चोरी और चुनावी नैतिकता पर भी सवाल उठाए और कहा कि देशहित के मुद्दों पर प्रधानमंत्री की चुप्पी चिंताजनक है।
आज प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए जीएसटी काउंसिल, जो एक संवैधानिक निकाय है, द्वारा किए गए संशोधनों का पूरा श्रेय खुद को देने की कोशिश की।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस लंबे समय से यह तर्क देती आई है कि GST वास्तव में Growth Suppressing Tax है। इसमें कई समस्याएँ हैं…
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) September 21, 2025
आम आदमी पार्टी और अन्य की कड़ी टिप्पणियाँ
AAP के दिल्ली अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने कहा कि भाषण से उम्मीद थी कि विदेश नीति और H-1B जैसे मुद्दों पर सख्त संदेश मिलेगा, पर यह पुरानी खबर को बड़ा करके पेश करने जैसा रहा। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाषण का समय बदलकर इसे क्रिकेट मैच के शेड्यूल के अनुरूप रखा गया — जो दुर्भाग्यपूर्ण है।
राज्यसभा सांसद संजय सिंह (AAP) ने कहा कि सरकार ने पिछले आठ वर्षों में GST के नाम पर जनता से वसूली की है और अब उसे लोगों के खाते में पैसा लौटाना चाहिए।
#WATCH | Lucknow | On PM Modi’s address to the nation on GST reforms, Uttar Pradesh Congress President Ajay Rai says, “…PM Modi should also have spoken something on the way votes are being stolen and governments are being formed. This is very unfortunate…” pic.twitter.com/g9DSZasImb
— ANI (@ANI) September 21, 2025
निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने उदाहरण देकर कहा कि जीएसटी ने कुछ सामानों पर अनुचित असंतुलन पैदा किया—उदाहरण के तौर पर बिहार के पारंपरिक नाश्ते-मखाना पर अलग-अलग दरें—और कहा कि 90% लोगों को इससे नुकसान हुआ है।
अन्य दलों की प्रतिक्रियाएँ — शिवसेना और अन्यों का कटाक्ष
शिवसेना (UBT) के आनंद दुबे ने कहा कि भाषण में नई बात नहीं थी; उनका तर्क रहा कि पिछले वर्षों की नीतियों पर केंद्र को पहले ज़िम्मेदारी माननी चाहिए थी—नरेशन बदलकर आज “उपचार” पेश करना पर्याप्त नहीं।
#WATCH | Mumbai: Shiv Sena (UBT) leader Anand Dubey says, “PM Narendra Modi did not say anything new in his speech. If this new GST is good, this means that the previous GST slabs, which have been going on for the last 7-8 years, were not suitable for people and were bad?…” pic.twitter.com/JyPVXCA5Pj
— ANI (@ANI) September 21, 2025
विपक्ष के तर्क — सार में क्या कहा जा रहा है?
1.अभिव्यक्ति का समय और स्वर: कई विपक्षी नेताओं का दावा है कि घोषणाएँ अक्सर चुनावी-संदर्भ या इवेंट-बनाने की रणनीति के अनुरूप की जाती हैं, और वास्तविक राहत का दायरा सीमित रहता है।
2.राजस्व और दीर्घकालिक प्रभाव: आलोचक कहते हैं कि कर दरों में कटौती का राजस्व पर क्या असर पड़ेगा और इसे कैसे भरा जाएगा, इस पर सरकार को स्पष्टता देनी चाहिए।
3.न्यायसंगतता: कुछ नेता पूछ रहे हैं कि क्यों कुछ वस्तुओं पर कटौती और कुछ पर नहीं — किस आधार पर स्लैब तय किए गए हैं, और क्या इससे क्षेत्रीय असमानताएँ नहीं जन्मेंगी।
4.पिछली नीतियों का लेखा-जोखा: नोटबंदी, जीएसटी और अन्य बड़े आर्थिक फैसलों के कारण हुए व्यवधानों की चर्चा फिर उठ रही है—विरोधियों का कहना है कि सुधारों का औचित्य तभी स्वीकार्य होगा जब पुरानी क्षति की भरपाई भी हो।
सरकार-पक्ष का बचाव और तर्क
जीएसटी एक सतत सुधार प्रक्रिया है; समय-समय पर परिमार्जन आवश्यक हैं।
कटौतियाँ सीधे उपभोक्ता स्तर पर राहत देंगी और त्योहारों के मौके पर घरेलू मांग को प्रोत्साहित करेंगी।
“Made in India” को बढ़ावा देने का सामाजिक-आर्थिक संदेश भी भाषण का हिस्सा था।
राजनीतिक और सार्वजनिक असर — आगे क्या होगा?
मीडियाई बहसें और संसद में सवाल तेज़ होंगे; विपक्ष इस मुद्दे को चुनावी रणनीति में उपयोग कर सकता है।
आर्थिक निगरानी: अर्थशास्त्री और वित्त विशेषज्ञ राजस्व-इम्पैक्ट और मुद्रास्फीति पर नजर रखेंगे।
जन-भावना: यदि कटौती का लाभ रिटेल स्तर पर वाकई दिखा, तो सरकार को तत्काल राजनीतिक लाभ मिल सकता है; वरना आलोचना तेज होगी।
संतुलित परख जरूरी
प्रधानमंत्री के भाषण ने उपभोक्ता-स्तर पर तत्काल राहत और ‘स्वदेशी’ पर जोर देने का संदेश दिया, पर विपक्ष इसे पुरानी गलतियों पर त्वरित पैचवर्क कहकर खारिज कर रहा है। असल परीक्षा यह होगी कि नई दरें वास्तव में दुकानों और घरों तक कैसे पहुँचती हैं और क्या यह दीर्घकालिक विकास व वित्तीय स्थिरता के साथ टिकती हैं।
देखने वाली बातें: आधिकारिक जीएसटी नोटिफिकेशन की विस्तृत सूची, केंद्रीय और राज्य सरकारों की रेवेन्यू-रैशन्स, और अगले कुछ हफ्तों में खुदरा कीमतों में वास्तविक बदलाव।