महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर ठाकरे बनाम ठाकरे के बीच रिश्तों की गर्माहट चर्चा का विषय बन गई है। करीब दो दशक पहले उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे एक साथ राजनीति में कदम से कदम मिलाकर चल रहे थे, और अब एक बार फिर से शिवसेना के पुराने साथी प्रवीण दरेकर और उद्धव ठाकरे की मुलाकात ने राजनीतिक गलियारों में नई संभावनाओं को जन्म दे दिया है।
विधान भवन में ‘राजनीति से इतर’ मुलाकात, लेकिन गूंज रही राजनीतिक गलियों में
सोमवार को महाराष्ट्र विधानमंडल के मानसून सत्र के दौरान शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के प्रमुख उद्धव ठाकरे और भाजपा नेता एवं विधान परिषद सदस्य प्रवीण दरेकर के बीच बातचीत हुई। हालांकि इस बातचीत को दोनों पक्षों ने गैर-राजनीतिक बताया, लेकिन इसके सियासी मायनों को नजरअंदाज करना आसान नहीं है।
“मैं अब भी बालासाहेब का सच्चा शिवसैनिक हूं” – दरेकर
इस मुलाकात के दौरान दरेकर ने खुद को बाल ठाकरे का 100 फीसदी सच्चा शिवसैनिक बताते हुए कहा कि उनकी निष्ठा और मराठी हितों के प्रति प्रतिबद्धता पर कोई सवाल नहीं उठ सकता। जवाब में उद्धव ठाकरे ने कहा, “अगर आप सच में मराठी लोगों के लिए काम करना चाहते हैं, तो आपको शिवसेना में लौट आना चाहिए।”
शिवसेना की ओर वापसी का खुला संकेत?
जब प्रवीण दरेकर ने स्व-पुनर्विकास परियोजना पर अपनी रिपोर्ट उद्धव ठाकरे को सौंपी, तब ठाकरे ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा, “अगर आपकी नीयत साफ है, तो मैं संवाद के लिए हमेशा तैयार हूं।” इस पर दरेकर ने मुस्कराते हुए कहा, “जरूर आइए, हम सब एक बार फिर साथ आएं।” इसे राजनीतिक गलियारों में शिवसेना में संभावित वापसी का इशारा माना जा रहा है।
एक राजनीतिक यात्रा, कई मोड़
प्रवीण दरेकर की राजनीतिक यात्रा विविधताओं से भरी रही है:
2005: शिवसेना छोड़कर राज ठाकरे की मनसे में शामिल हुए।
2009: मगथाने विधानसभा सीट से मनसे के टिकट पर चुनाव लड़ा।
2014: चुनाव में हार के बाद मनसे से मोहभंग।
2015: भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर नई शुरुआत।
पिछले 10 वर्षों से भाजपा के सक्रिय नेता और विधान परिषद सदस्य हैं।
क्या है इस मुलाकात के मायने?
वर्तमान में जब मराठी बनाम हिंदी को लेकर महाराष्ट्र में बहस तेज है और शिवसेना दो धड़ों में बंटी हुई है, ऐसे समय में दरेकर जैसे पुराने शिवसैनिक की वापसी की चर्चा उद्धव ठाकरे के लिए एक राजनीतिक बढ़त बन सकती है। साथ ही भाजपा के भीतर भी यह संकेत है कि कुछ पुराने नेता खुद को असहज महसूस कर रहे हैं।
सियासत में दरवाजे कभी बंद नहीं होते
प्रवीण दरेकर और उद्धव ठाकरे की यह मुलाकात महज एक औपचारिक संवाद नहीं, बल्कि संभावित राजनीतिक समीकरणों का संकेत भी हो सकती है। अगर आने वाले समय में दरेकर वाकई शिवसेना (उबाठा) में लौटते हैं, तो यह न केवल शिवसेना की राजनीतिक ताकत में इजाफा करेगा, बल्कि भाजपा के लिए भी एक झटका साबित हो सकता है।