(बरेली से विकास त्रिपाठी ‘पराशर’)
बरेली की फिज़ाओं में इन दिनों सिर्फ़ दो चीज़ें तैर रही हैं – एक गुटखा की खुशबू और दूसरी अनिल एसोसिएट्स के फर्जी कागजातों की स्याही!
पांच साल में एक करोड़ का टर्नओवर दिखाकर 500 करोड़ का खेल करने वाले अनिल गुप्ता अब “ठेकेदारों के भगवान” घोषित किए जा चुके हैं। मंदिरों में मूर्ति स्थापना तो अभी नहीं हुई, लेकिन नेताजी और अफसरों के चरणों की परिक्रमा उन्होंने बाकायदा शुरू कर दी है।
ठेका लेने का फार्मूला – कागज फाड़ो, दस्तावेज जोड़ो, और ठेका झोले में डालो!
सरकार का आदेश है कि जांच हो। अफसरों का उत्तर है – “जांच हो रही है।” ठेकेदार का जवाब – “फिर भी हमें ही क्यों पकड़ा?” अब बताइए! सीओ साहब ने जांच की फाइल दो महीने से अलमारी में रख छोड़ी थी। शायद उन्हें लगा होगा कि जैसे पुरानी शराब होती है, वैसे ही जांच भी पुरानी हो तो असरदार होती है।
जब ‘भ्रष्टाचार’ को ठेका मिले –
सुनिए कैसे अनिल जी ने ठेके हथियाए — नकली जीएसटी सर्टिफिकेट, जाली सॉल्वेंसी, और अद्भुत ‘अनुभव प्रमाण पत्र’! जिसे पढ़कर खुद अनुभव भी शर्मा जाए।
जहाँ बाकी ठेकेदार ईमानदारी से एक-एक कागज जुटा रहे थे, वहाँ अनिल जी ने सीधा “Ctrl+C, Ctrl+V” का प्रयोग किया।
और जब नेताओं के खिलाफ जा बैठे –
भाई, भ्रष्टाचार तो चलता है… लेकिन नेताजी की कुर्सी के पास जाकर बैठे तो खुद कुर्सी खिसक गई। जो नेताओं की शरण में था, वो तो करोड़पति बना, और जो उनके खिलाफ गया, वो चार्जशीट वाला बना।
आरोपों की झड़ी – लेकिन गुप्ता जी अभी भी हरी झंडी!
•जाली दस्तावेज़
•फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र
•जीएसटी में धांधली
•टर्नओवर की जादूगरी
लेकिन साहब, ये सब तब तक आरोप ही हैं, जब तक कोई नेता इसे मान्यता न दे दे।
पुलिस जांच या चाय की चुस्की?
एसआईटी, जांच अधिकारी, थाना प्रभारी – सब लगे हैं। लेकिन सवाल यह है कि चाय ज़्यादा पी रहे हैं या जांच ज़्यादा कर रहे हैं? जनता कह रही है – “फाइल तो तभी खुलती है जब उसमें से रिश्वत की खुशबू आए!”
बरेली की गलियों में अब एक ही चर्चा है – “अगर ठेका चाहिए तो अनिल गुप्ता से गुरुमंत्र लीजिए।” क्योंकि जब सिस्टम में गड़बड़ी हो और अफसरों की आँखों पर नोटों की पट्टी बंधी हो, तब ‘अनुभव’ से नहीं, ‘जुगाड़’ से ठेका मिलता है।
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