
बलिया की विधायक केतकी सिंह ने मेडिकल साइंस में एक नया शोध किया है— ‘बीमारियों का भी धर्म होता है!’ उनकी मांग है कि बलिया में बन रहे मेडिकल कॉलेज में हिंदुओं और मुस्लिमों के इलाज के लिए अलग-अलग विंग बनाए जाएं। वजह? ताकि हिंदू समुदाय “सुरक्षित” महसूस कर सके! अब यह पता नहीं कि सुरक्षा की जरूरत बीमारों को है या विधायक जी के दिमाग़ को?
‘होली में परेशानी होती है, तो इलाज में भी होगी’— विधायक का नया लॉजिक
बीजेपी विधायक केतकी सिंह को इस बात की बड़ी चिंता है कि मुस्लिमों को होली, रामनवमी और दुर्गा पूजा में दिक्कत होती है, तो कहीं वे इलाज करवाने में भी न घबरा जाएं! इसलिए उनका समाधान है— “अलग बिल्डिंग बनवा दीजिए, जिससे हर कोई अपने-अपने धर्म के हिसाब से इलाज करवा सके!”
मतलब अब अस्पताल में डॉक्टर पहले बीमार का धर्म पूछेगा, फिर स्टेथोस्कोप लगाएगा। डॉक्टर की नई वर्दी पर अब ‘डॉक्टर’ नहीं, बल्कि ‘हिंदू विंग स्पेशलिस्ट’ और ‘मुस्लिम विंग एक्सपर्ट’ लिखा होगा!
बीमारी का भी धर्म तय कर दें विधायक जी!
विधायक जी के तर्क को आगे बढ़ाते हुए सरकार को चाहिए कि बीमारियों की भी सांप्रदायिक पहचान करवा ली जाए। जैसे—
• डेंगू और मलेरिया हिंदू विंग में जाएंगे, क्योंकि ये बरसात में आते हैं, और सावन में कांवड़ यात्रा भी होती है!
• चिकनगुनिया और स्वाइन फ्लू मुस्लिम विंग में भेजे जाएंगे, क्योंकि इनमें ‘चिकन’ और ‘स्वाइन’ शब्द आता है!
• हार्ट अटैक तो नास्तिकों को होता होगा, क्योंकि उन्हें भगवान पर भरोसा नहीं होता!
अब अलग-अलग सड़कों, रेलवे स्टेशनों और बाजारों की मांग भी होनी चाहिए!
अगर विधायक जी की यही सोच है, तो फिर अगली मांग यह भी हो सकती है कि—
• हिंदू और मुस्लिमों के लिए अलग-अलग सड़कें बनें, ताकि कोई “असुरक्षित” महसूस न करे!
• रेलवे स्टेशन पर अलग-अलग प्लेटफॉर्म हों, ताकि ट्रेन भी धर्म के आधार पर यात्रियों को ले जाए!
• बाजारों में भी दुकानों को हिंदू और मुस्लिम सेक्शन में बांट दिया जाए, ताकि विधायक जी के “तर्क” को और मजबूती मिले!
राजनीति का बुखार, तर्कशक्ति ICU में!
मेडिकल कॉलेज बनने से पहले ही विधायक जी ने इसे ‘कम्युनल हॉस्पिटल’ बनाने की स्क्रिप्ट तैयार कर दी है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि—
आखिर बीमारी आने से पहले कोई इंसान धर्म देखकर बीमार होता है क्या?
अगर विधायक जी को यही समाधान सूझ रहे हैं, तो बेहतर होगा कि यूपी सरकार उनके लिए भी एक ‘लॉजिक विंग’ बनाए, जहाँ उनके जैसे नेताओं का इलाज हो सके— शायद कुछ बेहतर तर्कशक्ति वापस आ जाए!

VIKAS TRIPATHI
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