
मध्य प्रदेश: के मऊगंज जिले में होली के दूसरे दिन एक बड़े हिंसक संघर्ष में पुलिस और स्थानीय आदिवासी समुदाय आमने-सामने आ गए। यह झड़प उस समय हुई जब पुलिस एक युवक को छुड़ाने के लिए पहुंची, जिसे ग्रामीणों ने बंधक बना लिया था। इस संघर्ष में एएसआई रामगोविंद गौतम शहीद हो गए, जबकि आठ पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए। यह टकराव लगभग चार घंटे तक चला, जिसमें पथराव, लाठीचार्ज और फायरिंग तक की नौबत आ गई।
मऊगंज कांड की पृष्ठभूमि: कहां से शुरू हुआ विवाद?
गड़रा गांव के रहने वाले रजनीश द्विवेदी की जमीन पर अशोक कोल नामक युवक अधिया पर काम करता था। कुछ समय पहले, अशोक कोल ने द्विवेदी परिवार की भूमि से सटी जमीन खरीद ली, जिससे आपसी संबंधों में तनाव पैदा हो गया।
लगभग दो महीने पहले जब अशोक अपनी ज़मीन की रजिस्ट्री कराने हनुमना गया, तो लौटते समय सड़क हादसे में उसकी मौत हो गई। जांच में यह सामने आया कि उसकी बाइक भैंस से टकराई थी, जिससे गिरने के कारण उसकी जान गई। हालांकि, अशोक के परिवार वालों ने इसे दुर्घटना नहीं, बल्कि हत्या बताया और सीधे द्विवेदी परिवार पर आरोप लगा दिया।
हत्या के बाद बढ़ा तनाव, भीड़ ने युवक को बनाया बंधक
शनिवार दोपहर लगभग 1:30 बजे, रजनीश द्विवेदी का भाई सनी द्विवेदी गांव में घूमते हुए अशोक कोल के मोहल्ले में चला गया। वहां पहले से नाराज बैठे अशोक के परिवारजनों ने उसे पकड़ लिया, बंधक बना लिया और जमकर पीटा। इस हमले में सनी की मौत हो गई।
घटना के बाद अशोक के परिवारवालों ने गांव के 250 से अधिक आदिवासियों को इकट्ठा कर लिया। भीड़ इतनी उग्र हो गई कि उन्होंने किसी को भी सनी के शव के पास जाने नहीं दिया।
जब सनी के पिता और भाई उसे छुड़ाने पहुंचे, तो भीड़ ने उन्हें भी पीटा। इसी दौरान पुलिस को सूचना दी गई और शाहपुर थाना प्रभारी संदीप भारतीय अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंचे।

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पुलिस पहुंची, तो उन पर भी हमला कर दिया गया
जब पुलिस मौके पर पहुंची और कमरे का दरवाजा खुलवाया, तो उन्होंने देखा कि सनी द्विवेदी की मौत हो चुकी थी। इससे पहले कि पुलिस हालात को संभाल पाती, भीड़ ने अचानक हमला कर दिया।
आक्रोशित लोगों ने पुलिसकर्मियों पर लाठी-डंडों और पत्थरों से वार करना शुरू कर दिया। हमले में शाहपुर थाना प्रभारी संदीप भारतीय, हनुमना तहसीलदार कुंवारे लाल पनिका, एएसआई बृहस्पति पटेल, एएसआई रामचरन गौतम, एसडीओपी अंकिता सूल्या और 25वीं बटालियन के जवाहर सिंह यादव समेत कई पुलिसकर्मी घायल हो गए।
स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि महिला अधिकारियों को कमरे में खुद को बंद कर जान बचानी पड़ी। एसडीओपी अंकिता शूल्या और एसआई आरती वर्मा ने स्थिति को काबू में लाने की कोशिश की, लेकिन भीड़ ने उन पर भी हमला कर दिया।
स्थिति बेकाबू होते देख पुलिस हेडक्वार्टर को इमरजेंसी अलर्ट भेजा गया और बैकअप फोर्स की मांग की गई।
एएसआई रामगोविंद गौतम ने जान की बाजी लगाकर बचाई पुलिस टीम
संघर्ष के दौरान एएसआई रामगोविंद गौतम ने बहादुरी दिखाते हुए पुलिसकर्मियों की जान बचाने के लिए मोर्चा संभाला। वे हमलावरों से लड़ते रहे, लेकिन इस बीच उन पर घातक हमला हुआ और वे शहीद हो गए।
एएसआई रामगोविंद गौतम 25वीं बटालियन, भोपाल में पदस्थ थे और वे सतना जिले के कोठी थाना क्षेत्र के पवैया गांव के रहने वाले थे। दुखद रूप से वे मात्र आठ महीने बाद रिटायर होने वाले थे।
पुलिस बैकअप पहुंचते ही भागे हमलावर
लगभग आधे घंटे बाद, भारी पुलिस बल मौके पर पहुंचा और स्थिति को संभालने के लिए फायरिंग करनी पड़ी। इसके बाद 250 से अधिक हमलावर आदिवासी वहां से भाग खड़े हुए।
सनी द्विवेदी का शव पुलिस ने कब्जे में लिया, और घायल पुलिसकर्मियों को अस्पताल पहुंचाया गया।
घायलों में शामिल पुलिसकर्मियों को रीवा और मऊगंज के अस्पतालों में भर्ती कराया गया।
पुलिस पर छह महीने में दूसरा बड़ा हमला
यह घटना पिछले छह महीनों में दूसरी बार थी, जब शाहपुर थाने की पुलिस पर हमला हुआ।
सितंबर में बरांव गांव में अवैध शराब जब्त करने गई पुलिस टीम पर भी हमला हुआ था, जिसमें एसडीओपी अंकिता शूल्या और अन्य पुलिसकर्मी घायल हुए थे।
स्थानीय लोग और पुलिस विभाग के कई अधिकारियों का मानना है कि यदि उस समय हमलावरों पर कड़ी कार्रवाई की गई होती, तो यह घटना नहीं होती।
एसपी रसना ठाकुर के कार्यकाल में यह दूसरा बड़ा हमला है, जिससे कानून-व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं।
क्या यह प्रशासन की विफलता है?
मऊगंज कांड ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
1. क्या पुलिस और प्रशासन पहले ही इस दुश्मनी को खत्म करने के लिए कोई कदम उठा सकते थे?
2. क्या पहले हुए पुलिस हमलों पर सख्त कार्रवाई होती, तो यह घटना टल सकती थी?
3. क्या इस घटना के बाद आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदायों के बीच तनाव और नहीं बढ़ेगा?
अब यह देखना होगा कि सरकार और पुलिस प्रशासन इस मामले में क्या सख्त कदम उठाते हैं ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।

VIKAS TRIPATHI
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