पणजी/बेंगलुरु: महादयी नदी को लेकर कर्नाटक और गोवा के बीच की पुरानी तनातनी अब खुलेआम बयानबाज़ी की जंग में बदल चुकी है। गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के हालिया बयान ने जहां राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है, वहीं कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने तीखा पलटवार करते हुए इसे “मानसिक संतुलन की गड़बड़ी” बता दिया।
CM सावंत की चेतावनी: “केंद्र पानी मोड़ने की इजाजत नहीं देगा”
मंगलवार को गोवा विधानसभा में बोलते हुए मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने साफ कहा कि महादयी नदी के जल प्रवाह को मोड़ने की कोई भी गतिविधि केंद्र सरकार के लिए स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा कोई प्रयास हुआ तो गोवा सरकार सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर करेगी।
DK शिवकुमार का पलटवार: “CM को समझ ही नहीं सहयोग क्या होता है”
गोवा सरकार के तेवरों पर कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा:“मेरे ख्याल से गोवा के मुख्यमंत्री ने मानसिक संतुलन खो दिया है। उन्हें यह तक समझ नहीं कि राज्यों के बीच सहयोग और समन्वय कैसे बनाए जाते हैं। मैं महादयी परियोजना पर काम शुरू करूंगा, और उन्हें जो करना है कर लेने दीजिए।”
शिवकुमार के इस बयान ने विवाद में और आग लगा दी है।
प्रमोद सावंत ने कहा: “कांग्रेस का यही कल्चर है”
शिवकुमार के तीखे शब्दों पर गोवा सीएम प्रमोद सावंत ने संयमित लेकिन तंज कसते हुए जवाब दिया:“हमारी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट और महादयी ट्राइब्यूनल में है। केंद्र से हमारी बातचीत लगातार जारी है। कांग्रेस तो शुरू से ऐसी भाषा बोलती आई है। मुझे इन बयानों से फर्क नहीं पड़ता। मैं तो बस इतना कहूंगा कि महादयी के लिए चाहे केंद्र से गुहार लगानी हो या जमीन पर संघर्ष करना हो, मैं पीछे नहीं हटूंगा।”
क्या है महादयी विवाद?
महादयी नदी, जिसे गोवा में मंडोवी के नाम से जाना जाता है, करीब 77 किलोमीटर लंबी है।
इसमें से 52 किलोमीटर गोवा में और
29 किलोमीटर कर्नाटक में बहती है।
कर्नाटक की कलासा-बंदूरी नाला परियोजना के तहत राज्य महादयी से अपने हिस्से का पानी मोड़कर पेयजल संकट वाले इलाकों में पहुंचाना चाहता है, जिसे गोवा अपने अधिकारों का उल्लंघन मानता है। मामला लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट और ट्राइब्यूनल में लंबित है।
अब क्या?
बयानबाज़ी के इस संग्राम ने साफ कर दिया है कि महादयी अब सिर्फ जल विवाद नहीं, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक अखाड़ा बन चुका है। आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार और जनता की अदालत — तीनों में यह मामला और गर्मा सकता है।