नई दिल्ली— दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) के अध्यक्ष चुनाव के परिणामों को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई शुरू कर दी है और मुख्य चुनाव आयुक्त को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) तथा संबंधित चुनावी दस्तावेज़ सुरक्षित रखने का निर्देश दिया है। मामले में अदालत ने दलीलों को सुनने के बाद अगली सुनवाई के लिए तिथियाँ भी निर्धारित कीं — जिनकी वजह से राजनीतिक व कानूनी दोनों स्तरों पर चर्चा तेज हो गयी है।
क्या हुआ — घटनाक्रम का सार
18 सितम्बर को DUSU चुनाव हुए; अध्यक्ष पद पर ABVP के आर्यन मान विजयी घोषित हुए जबकि अन्य पदों पर NSUI व ABVP के प्रत्याशी सफल रहे। इस बार मतदान करीब 39% रहा।
चुनाव परिणाम आने के बाद पूर्व अध्यक्ष और NSUI नेता रौनक खत्री ने चुनाव प्रक्रिया व मतगणना में गड़बड़ी होने का आरोप लगाते हुए चुनाव रद्द करने की याचिका दायर की। खत्री ने टीवी पर भी कहा था कि EVM में गड़बड़ी है और वे इस बाबत न्यायालय का सहारा लेंगे।
दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिका पर नोटिस जारी कर मामले की जांच-पड़ताल की माँग की और चुनाव में प्रयुक्त EVM को सुरक्षित रखने के निर्देश दिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि EVM की स्थिति और उससे जुड़े लॉग/वॉटरर देता (VVPAT) आदि सिले किए जाएँ ताकि आगे फोरेंसिक जांच संभव हो सके।
सुनवाई की तिथियाँ — ध्यान रखने वाली बातें
मामले में अदालत की सुनवाई के अगले दौर और विभिन्न निर्देशों के कारण कई तिथियाँ सामने आई हैं:
याचिका पर प्रारम्भिक सुनवाई के संदर्भ में अदालत ने EVM को सुरक्षित रखने का तत्काल निर्देश दिया और संबंधित अधिकारियों को कारण बताने के लिए नोटिस जारी किया।
मामले के अलग-अलग पहलुओं (EVM/फोरेंसिक, चुनाव-गाइडलाइन के पालन, प्रत्याशियों को नोटिस जारी करना) से जुड़ी अगली सुनवाइयाँ अलग-अलग तारीखों पर निर्धारित की गई हैं — जिनमें से एक प्रमुख सुनवाई 6 नवंबर और विस्तार से सुनवाई व तकनीकी निर्देशों के लिए 16 दिसंबर की तारीख भी सूचीबद्ध की गई है। (न्यायालय प्रक्रिया में कभी-कभी अलग-अलग पक्षों/मुद्दों पर अलग तिथियाँ तय की जाती हैं।)
अदालत के निर्देश — EVM से जुड़ी प्रक्रियाएँ और सुरक्षा
केन्द्रीय और विश्वविद्यालय चुनाव आधिकारियों को कोर्ट ने कहा कि:
चुनाव में प्रयुक्त EVM/VVPAT को सील करके सुरक्षित रखा जाए; मशीनों तक किसी भी प्रकार की गैरकानूनी पहुँच रोकी जाए।
मतगणना से संबंधित लॉगबुक, CCTV फुटेज, काउंटिंग-स्लिप, और चुनाव आयोग को दिए गए प्रोटोकॉल उपलब्ध कराये जाएँ।
यदि आवश्यक ठहरता है तो मशीनों की फोरेंसिक जाँच कराई जा सकती है।
पक्षों की प्रतिक्रिया (संक्षेप में)
रौनक खत्री (याचिकाकर्ता / पूर्व DUSU अध्यक्ष, NSUI) — खत्री ने गड़बड़ी के आरोप दोहराये हैं और कहा है कि ‘छात्र लोकतंत्र की शुद्धता’ के लिए सच्चाई सामने आनी चाहिए; उन्होंने कोर्ट जाने का विकल्प अपनाया।
दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन — विश्वविद्यालय चुनाव रद्द करने की माँग का विरोध कर रहा है और कहा गया है कि चुनाव निर्धारित नियमों के तहत संपन्न हुए। उन्हें कोर्ट ने भी नोटिस जारी कर कुछ जवाब देने को कहा है।
जीतने वाले प्रत्याशी / ABVP — अभी तक सार्वजनिक बयानबाज़ी में संयम देखने को मिला है; कई बार विद्याथी संगठनों ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया का सम्मान करेंगे और अदालत के निर्णय का पालन करेंगे।
राजनीतिक व छात्र-जीवन पर निहितार्थ
यह मामला सिर्फ एक चुनावी विवाद नहीं रहकर छात्र राजनीति, विश्वविद्यालय की चुनाव प्रक्रिया और युवा-नेतृत्व की वैधता पर बड़ा सवाल बन गया है।
EVM की पारदर्शिता, VVPAT-इंटरप्रेटेशन और काउंटिंग-प्रोटोकॉल पर पुनर्विचार की माँगें तेज हो सकती हैं — खासकर शैक्षणिक संस्थानों में जहाँ मतदाता कम और मतों का मार्जिन छोटा रहता है।
भविष्य के DUSU चुनावों में मतगणना-प्रक्रिया, टीवी/मीडिया पर आरोप-प्रत्यारोप और कोर्ट के हस्तक्षेप की भूमिका बढ़ सकती है।
आगे क्या देखने को मिलेगा — कोर्ट में क्या-क्या माँगा जा सकता है
EVM/VVPAT की फोरेंसिक जांच या परिणामों की पुनःगणना की सम्भावना पर दवा-विचार।
चुनाव आयोग/यूनिवर्सिटी चयन समिति से काउण्टिंग-रिपोर्ट, कंट्रोल-रूम लॉग, पोल एजेंट्स के हस्ताक्षर और CCTV फुटेज माँगा जा सकता है।
अदालत यदि प्राथमिक प्रश्नों पर सन्तोषजनक जवाब नहीं पाती है तो अस्थायी रोक (stay) या चुनाव रद्दीकरण तक का आदेश दे सकती है।
समापन — मुख्य बातें जो अभी ध्यान में रखें
1.EVM को सुरक्षित रखने के निर्देश का मतलब है कि आगे की जाँच के लिए तकनीकी सबूत उपलब्ध रहेंगे।
2.अगली सुनवाईयां (6 नवम्बर, 16 दिसम्बर) निर्णायक हो सकती हैं — इनके नतीजों से या तो चुनाव-परिणाम पक्के होंगे या पुनर्विचार/पुनर्गणना की प्रक्रिया सामने आ सकती है।
3.छात्र समुदाय और राजनैतिक छात्र-संघीय गतिरोध इस मुद्दे को अधिक राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला सकते हैं।