नई दिल्ली — संसद की संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजने की मंजूरी मिलने के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को राज्यसभा में संविधान के 130वें संशोधन विधेयक को सभापटल पर रख दिया। अब सरकार की अगली कार्रवाई यह होगी कि दोनों सदनों में कुल 31 सदस्यीय जेपीसी का गठन किया जाए। समिति को रिपोर्ट सौंपने की समय-सीमा शीतकालीन सत्र के पहले सप्ताह के आख़िरी दिन तक रखी गई है — यानी करीब तीन महीने में जेपीसी को अपना निष्कर्ष संसद के समक्ष रखना होगा।
हालाँकि मुख्य प्रश्न यही बना हुआ है कि जब सरकार के पास संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत नहीं है, तो ऐसा संवैधानिक संशोधन संसद से कैसे पारित होगा — और इसके पीछे एनडीए की वास्तविक मंशा क्या हो सकती है?
पास कराने का कानूनी और राजनीतिक कठिन रास्ता
संविधान में बदलाव के लिये दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत अनिवार्य है। वर्तमान राजनीतिक संख्या-बल देखते हुए मोदी सरकार के पास यह सुनिश्चित बहुमत मौजूद नहीं है। इसलिए सीधे-सीधे पारित कराना संवैधानिक रूप से संभव नहीं दिखाई देता। इसका एक विकल्प यही है कि जेपीसी के माध्यम से व्यापक बहस कराकर राजनीतिक सहमति जुटाई जाए — या फिर बिल का स्वरूप इस तरह ढाला जाए कि समर्थन हासिल हो। परन्तु दोनों मंडलों में आवश्यक संख्यात्मक समर्थन के बिना संशोधन पारित कराना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा।
JPC भेजना — राजनीतिक चाल या पारदर्शिता की पहल?
एनडीए ने विधेयक को जेपीसी के पास भेजने का फ़ैसला किया है। जेडीयू के सूत्रों का कहना है कि जेपीसी भेजना एक सकारात्मक कदम है — इससे विधेयक की तकनीकी और संवैधानिक बारीकियों पर गहराई से चर्चा हो सकेगी और पार्टियों को समय मिलेगा। जेडीयू सांसद कौशलेंद्र कुमार ने कहा कि इस बिल से ईमानदार राजनेताओं को कोई खतरा नहीं है, पर जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं, उन्हें इससे परेशानी हो सकती है — उनका स्पष्ट इशारा कुछ राजनीतिक परिवारों की ओर था।
घटक दलों की अनिर्णयशीलता — टीडीपी का रूख साफ नहीं
एनडीए के अन्य सहयोगी, खासकर तेलुगू देशम पार्टी (TDP), ने अभी तक विधेयक पर अपना स्पष्ट रुख नहीं बताया है। टीडीपी के भीतर और उसके नेता चंद्रबाबू नायडू के साथ विचार-विमर्श से पहले पार्टी कोई घोषणा नहीं कर रही है। अधिकारी सूत्रों की मानें तो नायडू से दिल्ली में चर्चा की संभावनाएं भी बन रही हैं, जहाँ वह केंद्रीय नेतृत्व से मिलने आ रहे हैं।
केंद्र का मकसद — संदेश भी और राजनीतिक मायने भी
सरकारी वर्क-स्रोतों की व्याख्या के अनुसार यह जरूरी नहीं कि सरकार द्वारा पेश किया गया हर विधेयक पारित ही हो; पर विधेयक संसद और समाज के समक्ष एक स्पष्ट संदेश भी भेजता है — यानी भ्रष्टाचार के खिलाफ सक्त रुख रखने की नीयत। सरकार का दावा है कि यह बिल उन लोगों के लिये चेतावनी भी है जो भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। दूसरी ओर विपक्ष और आलोचक यह भी कहते हैं कि संवैधानिक प्रावधानों का दुरुपयोग राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाकर किया जा सकता है — इस घोषणा ने राजनीतिक बहस और तीव्र कर दी है।
आगे की प्रक्रिया — जेपीसी की टाइमलाइन और संभावित परिणाम
जेपीसी गठन: दोनों सदनों से 31 सदस्यीय समिति बनेगी।
समय-सीमा: समिति को शीतकालीन सत्र के पहले सप्ताह के अंतिम दिन तक रिपोर्ट देनी है — लगभग तीन महीने का समय।
परिणाम की संभावनाएँ: जेपीसी रिपोर्ट के बाद सरकार या विपक्ष द्वारा संशोधन पर संसद में बहस और मतदान होगा; तब भी पास कराने के लिये सदन में पर्याप्त संख्यात्मक समर्थन की आवश्यकता रहेगी।
कानूनी रास्ता कठिन, राजनीतिक लड़ाई तेज़
130वाँ संशोधन न केवल संवैधानिक मसले है बल्कि राजनीतिक संतुलन की भी कसौटी है। जेपीसी में भेजकर सरकार ने विधेयक को विस्तृत बहस के दायरे में ला दिया है — पर असली लड़ाई सदनों में बहुमत जुटाने की होगी। चाहे परिणाम जो भी रहे, यह घटनाक्रम भारतीय राजनीतिक इतिहास में दर्ज होगा — कि किस तरह संवैधानिक बदलाव के प्रयास पर राजनीतिक दलों ने समर्थन या विरोध का फैसला किया।














