
तमिलनाडु बनाम केंद्र सरकार: राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर बढ़ता विवाद
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत तीन-भाषा फॉर्मूले को लेकर केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार के बीच तनातनी जारी है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन लगातार केंद्र पर गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने का आरोप लगा रहे हैं। उन्होंने साफ कर दिया है कि उनकी सरकार तमिल भाषा और संस्कृति की सुरक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है और किसी भी हाल में राज्य में हिंदी लागू करने की इजाजत नहीं देगी।
मोदी सरकार सभी भाषाओं को देती है बराबर सम्मान – अश्विनी वैष्णव
इस बीच केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच को स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत की सभी भाषाएं समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि सिर्फ एक भाषा में नहीं, बल्कि कई भाषाओं में साइन बोर्ड और अन्य जानकारी दी जानी चाहिए, ताकि किसी भी व्यक्ति को परेशानी न हो।
तमिल एक प्राचीन और महान भाषा – केंद्रीय मंत्री
शनिवार (15 मार्च) को श्रीपेरंबदूर में जेटवर्क इलेक्ट्रॉनिक्स की सातवीं विनिर्माण सुविधा के उद्घाटन कार्यक्रम में मंत्री वैष्णव ने तमिल भाषा की महत्ता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा,
“तमिल एक अत्यंत प्राचीन भाषा है और हमें इसे संजोकर रखना चाहिए। यह केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की एक अनमोल धरोहर है।”
उन्होंने आगे बताया कि वे खुद को भाग्यशाली मानते हैं कि IIT कानपुर में पढ़ाई के दौरान उनके प्रोफेसर सदगोपन ने उन्हें तमिल भाषा सिखाई।
तमिल भाषा में दी स्पीच की शुरुआत
अश्विनी वैष्णव ने अपने भाषण की शुरुआत तमिल भाषा में करते हुए “वणक्कम” (नमस्ते) कहा। इसके बाद उन्होंने तमिल में ही “एप्पाडी इरुकेंगा” (आप कैसे हैं?) और “नांद्री” (धन्यवाद) कहकर दर्शकों का अभिवादन किया।
तमिलनाडु सरकार क्यों कर रही NEP का विरोध?
तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) सरकार का मानना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत केंद्र सरकार हिंदी को जबरन थोपने का प्रयास कर रही है। मुख्यमंत्री स्टालिन ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है और अगर कोई व्यक्ति हिंदी सीखना चाहता है, तो सरकार उसे नहीं रोकेगी। लेकिन तमिल भाषा को कमजोर करने या किसी अन्य भाषा को उस पर हावी होने देने की इजाजत भी नहीं दी जाएगी।
भाषाओं को लेकर जारी रहेगा टकराव?
इस मुद्दे को लेकर तमिलनाडु में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हैं। DMK जहां हिंदी विरोध को अपना प्रमुख एजेंडा बना रही है, वहीं केंद्र सरकार सभी भारतीय भाषाओं को समान महत्व देने की बात कर रही है। अब देखने वाली बात यह होगी कि यह टकराव कोई नया समाधान लेकर आएगा या फिर यह संघर्ष आगे भी जारी रहेगा?

VIKAS TRIPATHI
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