बॉम्बे उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को उद्योगपति अनिल अंबानी की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अपने और रिलायंस कम्युनिकेशंस के खातों को “धोखाधड़ी” (fraud) के रूप में चिह्नित करने के बैंक के निर्णय को चुनौती दी थी। खंडपीठ — न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले — ने कहा कि याचिका में कोई ठोस आधार प्रस्तुत नहीं किया गया है। फैसले की विस्तृत प्रतिलिपि अभी उपलब्ध नहीं कराई गई है।
क्या था मामला
एसबीआई ने पिछले वर्ष अनिल अंबानी और रिलायंस कम्युनिकेशंस के खाते धोखाधड़ी वाले खाते के रूप में चिन्हित किए। बैंक का आरोप था कि ऋण की शर्तों का उल्लंघन कर धन का अनुचित तरीके से हेराफेरी की गई। बैंक ने बाद में इस बाबत केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) में शिकायत भी दर्ज करवाई।
अंबानी का तर्क
अनिल अंबानी ने उच्च न्यायालय में दलील दी कि बैंक ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया — उन्हें सुनवाई का उपयुक्त अवसर नहीं दिया गया और वर्गीकरण का समर्थन करने वाले दस्तावेज प्रारम्भ में उपलब्ध नहीं करवाए गए; दस्तावेज छह महीने के पश्चात प्रस्तुत किए गए। उन्होंने कहा कि इस तरह की कार्यवाही उनके साथ गैर-न्यायसंगत है और इससे उनकी प्रतिष्ठा व वित्तीय स्थिति पर प्रभाव पड़ेगा।
सीबीआई की जांच और बैंक का दावा
एसबीआई ने अपनी शिकायत में दावा किया कि रिलायंस कम्युनिकेशंस और अनिल अंबानी के कथित आचरण के कारण बैंक को 2,929.05 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है, जिसके आधार पर सीबीआई ने जांच शुरू की और संबंधित परिसरों पर तलाशी भी ली गई। इसने अंबानी और रिलायंस कम्युनिकेशंस की वित्तीय विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं।
प्रभाव व आगे की दिशा
उच्च न्यायालय द्वारा याचिका खारिज किए जाने से अनिल अंबानी की कानूनी चुनौती को झटका लगा है और मामला अब जांच एजेंसियों के दायरे में और अधिक गहराई से जांचा जा सकता है। धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकरण न केवल कानूनी लड़ाई को कठिन बनाएगा बल्कि अंबानी के व्यावसायिक हितों तथा कंपनी के ऋण-प्रोफाइल पर भी असर डाल सकता है। आगे की कार्रवाई और संभावित आपत्तियों तथा फैसलों से ही इस मामले की दिशा स्पष्ट होगी।