मुंबई। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री आदित्य ठाकरे ने महाराष्ट्र विधानसभा की कार्यवाही को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को एक औपचारिक पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि सदन में विपक्ष की आवाज को जानबूझकर दबाया जा रहा है, जो राज्य के लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत है।
आदित्य ठाकरे ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई से व्यक्तिगत मुलाकात कर यह पत्र सौंपा और विधानसभा की स्थिति से उन्हें अवगत कराया। उन्होंने पत्र में कहा कि लगातार चार अधिवेशनों से विपक्ष के पास कोई नेता नहीं है, जो संसदीय परंपराओं और लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ है। ठाकरे ने दावा किया कि जब विपक्ष जनहित के मुद्दे उठाता है, तब सत्ता पक्ष घबराकर उन्हें बोलने से रोकता है।
मराठी बनाम हिंदी विवाद के बीच गरमाई राजनीति
इस पूरे घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में महाराष्ट्र में जारी “हिंदी बनाम मराठी” की बहस है, जिसने राज्य की राजनीति को गरमा दिया है। ठाकरे ने कहा कि उनकी पार्टी किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है, लेकिन भाजपा और उसकी सहयोगी ताकतें “बांटो और राज करो” की नीति अपना रही हैं। उन्होंने साफ किया कि उनकी लड़ाई सरकार की नीतियों और उसके अन्यायपूर्ण रवैये के खिलाफ है, न कि किसी समुदाय या भाषा के विरुद्ध।
“मराठी आंदोलनों को आतंकवाद से जोड़ना निंदनीय”
मीरा रोड में हाल में हुए तनावपूर्ण घटनाक्रम को लेकर ठाकरे ने सरकार की कार्रवाई पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “जब अन्य समुदायों के प्रदर्शन पर पुलिस चुप रहती है, तो मराठी समाज के शांतिपूर्ण आंदोलनों पर इतनी सख्ती क्यों?” उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि केवल मराठियों के आंदोलन को आतंक से जोड़ना न्यायसंगत नहीं है और इसके लिए उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को जवाब देना होगा।
“अन्यायकारी आदेश जलाने पर केस, लोकतंत्र के लिए खतरा”
ठाकरे ने यह भी आरोप लगाया कि जब मराठी समाज के लोग अन्यायपूर्ण सरकारी आदेश (GR) का शांतिपूर्ण विरोध करते हैं और प्रतीकात्मक रूप से उन्हें जलाते हैं, तब उनके खिलाफ पुलिस केस दर्ज किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, “जनता की आवाज को दबाकर और विरोध को आपराधिक बना कर लोकतंत्र को खत्म करने की कोशिश की जा रही है।”
“यह लड़ाई विचारधारा और लोकतंत्र बचाने की है”
ठाकरे ने अपने बयान में यह स्पष्ट किया कि उनकी लड़ाई किसी विशेष दल या नेता से नहीं, बल्कि उस विचारधारा से है जो महाराष्ट्र के आत्मसम्मान, भाषा और लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने विपक्ष की आवाज को दबाने की रणनीति को लोकतंत्र पर सीधा हमला बताया।
निष्कर्ष:
आदित्य ठाकरे के इस कदम ने महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। सुप्रीम कोर्ट को लिखे गए पत्र के जरिए उन्होंने न सिर्फ लोकतंत्र की रक्षा की मांग की है, बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि वे संविधानिक मर्यादाओं के भीतर रहकर सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करते रहेंगे।