नई दिल्ली,। संविधान दिवस के अवसर पर हिंदू छात्र परिषद, दिल्ली द्वारा मालवीय मिशन, पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर संविधान सम्मान सप्ताह का शुभारंभ गुरुवार को किया गया। यह कार्यक्रम 27 नवंबर से 30 नवंबर 2025 तक प्रतिदिन संध्या 3 बजे से 6 बजे तक आयोजित होगा। कार्यक्रम का मुख्य विषय संविधान निर्माण में सर बेनेगल नरसिंह राव (B. N. Rau) की भूमिका पर केंद्रित है।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता ज्योतिर्मठ एवं द्वारका मठ के आचार्य स्वामी गोविन्दानंद सरस्वती जी महाराज तथा मुख्य अतिथि मणिपुर के आईएएस अधिकारी एवं विधायक राम मुइव्वाह उपस्थित रहे। आयोजन की जिम्मेदारी हिंदू छात्र परिषद ने संभाली, जबकि कार्यक्रम समन्वयन की भूमिका शाम्भवी पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप जी महाराज ने निभाई।
संविधान: भारतीय लोकतंत्र का आधार — स्वामी आनंद स्वरूप जी
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए स्वामी आनंद स्वरूप जी महाराज ने कहा कि भारत का संविधान हजारों वर्षों की विदेशी दासता के बाद स्थापित लोकतांत्रिक स्वराज का प्रतीक है। उन्होंने कहा—“कभी यह देश मनुस्मृति और धर्मशास्त्रों से संचालित था, वहीं आज जनता के द्वारा, जनता के लिए और जनता के हित में बनाए गए संविधान से संचालित हो रहा है। इसलिए आज संविधान निर्माताओं और उनके मौलिक योगदान को स्मरण करना अत्यंत आवश्यक है।”
उन्होंने बताया कि संविधान सभा के गठन के बाद प्रारूप निर्माण में अनेक विद्वानों की भूमिका तो रही ही, परंतु मूल स्वरूप तैयार करने का श्रेय मुख्यतः सर बी. एन. राव को जाता है।
सर बी. एन. राव: संविधान मसौदे के प्रमुख निर्माता
वक्ताओं ने इतिहास को स्मरण कराते हुए बताया कि:
सर बी. एन. राव भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी थे
वे जिला न्यायालय से हाईकोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त हुए
संविधान मसौदा समिति के मुख्य विधिक सलाहकार रहे
भारत शासन अधिनियम 1935 के पुनर्संरचना में उनकी विशेष भूमिका रही
भारत में एस.सी.-एस.टी. सूची निर्माण में उनका महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है
सभा में यह भी कहा गया कि पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और डॉ. भीमराव अंबेडकर जैसे नेताओं ने जो बहसों के बाद संविधान को अंतिम स्वरूप दिया, उसकी आधारशिला सर बी. एन. राव ने अपने मसौदे के रूप में पहले ही स्थापित कर दी थी।

“बौद्धिक चेतना और संविधान दोनों अनिवार्य” — स्वामी गोविंदानंद सरस्वती जी
मुख्य वक्ता स्वामी गोविंदानंद सरस्वती जी महाराज ने अपने संबोधन में कहा कि किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए बौद्धिक जागरूकता अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा—
“भारत केवल भौगोलिक सत्ता नहीं, बल्कि ज्ञान और संस्कृति का राष्ट्र है। जब तक हम अपने कर्तव्यों को नहीं समझेंगे, तब तक अपने ऋण से मुक्त नहीं हो सकते।”
उन्होंने आगे कहा कि संविधान मानवता का कल्याणकारी दस्तावेज है और आज भी न्यायालयों में ईश्वर की शपथ इसी आदर्श व नैतिक आधार को दर्शाती है।
भारत गाँवों, संस्कृति और विविधता का देश
कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि भारत की पहचान उसके गाँवों में बसती विविध परंपराओं, संस्कृति और जातीय संरचना में है, और विश्व आज भी इन्हीं विशेषताओं के कारण भारत की ओर आकर्षित होता है।
आगे होंगे कई कार्यक्रम
संविधान सम्मान सप्ताह के दौरान:
विचार गोष्ठियाँ
संविधान पर आधारित प्रदर्शनी
सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ
पुस्तक विमोचन
आदि आयोजन किए जाएंगे।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विद्वान, छात्र, शोधकर्ता और समाजसेवी उपस्थित रहे।














