Friday, November 28, 2025
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पालघर के डहाणू नगर परिषद चुनाव में महायुति के भीतर तनाव चरम पर, शिंदे-फडणवीस आमने-सामने

महाराष्ट्र के पालघर जिले में डहाणू नगर परिषद चुनाव ने सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन के भीतर खलबली मचा दी है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीच बढ़ता मतभेद अब खुले मंचों पर तीखे आरोपों और राजनीतिक बयानबाज़ी के रूप में सामने आ रहा है। एक ही गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद दोनों नेता चुनावी रैलियों में एक-दूसरे पर अप्रत्यक्ष हमले करने से पीछे नहीं हट रहे।


रावण-लंका का उदाहरण देकर फूटा शिंदे का गुस्सा

डहाणू में आयोजित रैली में एकनाथ शिंदे ने भाजपा उम्मीदवार पर निशाना साधते हुए उन्हें “अहंकारी” बताते हुए रावण से तुलना की। उन्होंने कहा:

“रावण भी अहंकारी था और उसी अहंकार में उसकी लंका जल गई। डहाणू की जनता 2 दिसंबर को वही करेगी। हम विकास और भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन चाहते हैं।”

शिंदे ने यह भी दावा किया कि जनता अहंकार के खिलाफ उनके साथ खड़ी है।


फडणवीस का पलटवार — “हम लंका में रहते ही नहीं”

कुछ ही दिनों बाद भाजपा की रैली में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बिना नाम लिए शिंदे को जवाब देते हुए कहा:

“कोई कहे कि वह हमारी लंका जला देगा, तो जला दे। हम लंका में रहते ही नहीं, हम राम के भक्त हैं, रावण के नहीं।”

फडणवीस ने आगे कहा कि भाजपा के उम्मीदवार का नाम भरत राजपूत है और प्रतीकात्मक तौर पर जो “लंका जलाएगा” वह भरत ही होगा। उनके इस बयान को शिंदे के वक्तव्य का तंज भरा जवाब माना गया।


महायुति के भीतर क्यों बढ़ रही दरार?

यह विवाद सिर्फ बयानबाज़ी तक सीमित नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दोनों दलों के बीच असहजता पिछले कुछ महीनों से बढ़ रही है। हाल ही में कल्याण-डोंबिवली में शिंदे के बेटे के समर्थकों को भाजपा में शामिल किए जाने से विवाद और गहरा गया। इस फैसले के विरोध में शिवसेना शिंदे गुट ने कैबिनेट बैठक का भी बहिष्कार किया था।

बताया जाता है कि शिंदे इस मामले को लेकर केंद्रीय नेतृत्व से भी शिकायत कर चुके हैं, जिससे मामला और गंभीर हो गया है।


स्थानीय चुनाव में धार्मिक प्रतीकों का प्रवेश

डहाणू का चुनाव भले ही स्थानीय स्तर का हो, लेकिन राजनीतिक भाषा और माहौल विधानसभा चुनाव की झलक दे रहे हैं। राम, रावण, लंका जैसे धार्मिक प्रतीक इस चुनावी अभियान का हिस्सा बन चुके हैं। इसका उद्देश्य मतदाताओं की भावनाओं को साधना और सामाजिक-राजनीतिक समीकरणों को अपने पक्ष में मोड़ना माना जा रहा है।


क्या आगे गठबंधन और कमजोर होगा?

डहाणू में शिवसेना (शिंदे गुट) को एनसीपी के दोनों धड़ों — अजित पवार और शरद पवार — का समर्थन मिलना भी भाजपा के लिए चिंता का कारण माना जा रहा है।

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यह चुनाव सिर्फ नगर परिषद तक सीमित नहीं है, बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों की दिशा और महायुति की आंतरिक शक्ति संतुलन का संकेत भी देगा।

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VIKAS TRIPATHIhttp://www.pardaphaas.com
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