Wednesday, November 26, 2025
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बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल की शेख हसीना पर मौत की सजा-सुप्रीम कोर्ट यह बनाए रखे तो क्या अंतरराष्ट्रीय रास्ते खुलेंगे?

दिल्ली/ढाका — बांग्लादेश की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (आईसीटी) ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को अनुपस्थिति में (in-absentia) क्राइम्स अगेंस्ट ह्युमैनिटी के आरोपों में मौत की सजा सुनाई है — यह वही मुकदमा है जो 2024 में छात्रों के प्रदर्शनों के दमन से जुड़े आरोपों की जांच कर रहा था। कोर्ट के फैसले के बाद ढाका ने भारत से उनकी प्रत्यर्पण माँग भी की है।

मामला और वर्तमान स्थिति

रिपोर्टों के अनुसार शेख हसीना अगस्त 2024 से भारत में हैं और वे वहीं अनुपस्थिति में सुनवाई के दौरान उपस्थित नहीं थीं — यही वजह है कि ट्रिब्यूनल ने in-absentia सुनवाई की। ढाका की ओर से भारत को औपचारिक तौर पर प्रत्यर्पण का अनुरोध भेजा गया है।

अगर बांग्लादेश का सुप्रीम कोर्ट सज़ा बरकरार रखे — क्या अंतरराष्ट्रीय चुनौती संभव है?

क़ानून और अंतरराष्ट्रीय प्रथा के आधार पर संभावनाओं का संक्षेप यहाँ दिया जा रहा है:

1)घरेलू अपील (Domestic remedies) — पहला और अनिवार्य कदम

आम तौर पर किसी भी अंतरराष्ट्रीय तंत्र में जाने से पहले घरेलू उपचार/अपील के रास्ते पहले समाप्त किए जाने की प्रथा रहती है। यानी अगर शेख हसीना के वकील बांग्लादेश के उच्च न्यायालयों (अंततः सुप्रीम कोर्ट) में सफल अपील/री-व्यू की कोशिश नहीं करते या वह रास्ता उपलब्ध है और उपयोग नहीं हुआ, तो कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ यह कह सकती हैं कि घरेलू उपचार अधूरा है। (यह सिद्धांत यूरोपीय मानवाधिकार प्रैक्टिस और संयुक्त राष्ट्र-आधारित मार्गदर्शिकाओं में मानक है)।

2)बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट के बाद कौन से अंतरराष्ट्रीय विकल्प बचेगा?

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार तंत्र (UN Special Procedures, Special Rapporteurs) — ये एजेन्सियाँ व्यक्तिगत शिकायतें (communications) स्वीकार कर सकती हैं और सरकारी उत्तर मांग सकती हैं; परन्तु इनका आदेशरूपी असर सीमित होता है और वे घरेलू फैसलों को स्वतः रद्द नहीं करवा सकतीं। (विशेष रिपोर्टरों को शिकायतें भेजी जा सकती हैं)।

मानवाधिकार संधियों के अधीन व्यक्तिगत शिकायत-प्रक्रियाएँ — यहाँ पे कांटा है: कुछ संधियों के तहत व्यक्ति सीधे ट्रीब्यूनल/कमेटी के पास शिकायत कर सकता है यदि उस राज्य ने व्यक्तिगत शिकायत-प्रक्रिया स्वीकार की हो। उदाहरण के लिए ICCPR की First Optional Protocol (व्यक्तिगत शिकायतों को स्वीकार) में सदस्यता जरूरी है — बांग्लादेश ने ICCPR पर सहमति जताई है पर First Optional Protocol को भारतीय/बांग्लादेश दोनों में से कौन-कौन से स्वीकार करते हैं यह मायने रखता है। (सटीक रजिस्ट्री-स्थिति के आधार पर व्यक्तिगत शिकायतें सीमित/अनुपलब्ध हो सकती हैं)।

आंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) — बांग्लादेश रोम-स्टैच्यूट का राज्य-पक्षकार है; अतः ICC के पास सिद्ध सामग्री और अधिकार क्षेत्र होने पर — खासकर यदि दावी हो कि राष्ट्रीय निपटान निष्पक्ष/गौण है (complementarity doctrine) — प्रारंभिक जाँच/अनुसंधान शुरू हो सकता है। पर ICC किसी घरेलू मौत-सजा को “रद्द” नहीं करता; वह उस समय आरोपियों के विरुद्ध स्वतंत्र अभियोजन/अरेस्ट वारंट जारी कर सकता है यदि उसने क्षेत्रीय/राष्ट्रीय कार्यवाही असफल/न्यूनतम पाया। इसके अलावा ICC की प्रक्रिया लंबी और कानूनी मानदण्ड अलग हैं।

राज्य-से-राज्य मुक़दमे (ICJ) — अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) केवल राज्य बनाम राज्य मामलों को सुनता है; एक व्यक्तिगत नेता सीधे ICJ में केस नहीं दायर कर सकता। केवल तभी ICJ की पहुँच बनती है जब किसी दूसरे राज्य के नेतृत्व से संबंधित अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के उल्लंघन पर एक राज्य दूसरे राज्य के खिलाफ शिकायत करे — यह मार्ग व्यक्तिगत चुनौती के लिए व्यवहारिक नहीं माना जाता।

3)प्रत्यर्पण (Extradition) और भारत की भूमिका

भारत और बांग्लादेश का एक औपचारिक प्रत्यर्पण अनुबंध मौजूद है (2013 का tratado / बाद में कुछ संशोधन) — पर उसमें “राजनीतिक अपराध” अपवाद और अन्य सुरक्षा/न्यायिक शर्तें दर्ज हैं। इस अपवाद के आधार पर भारत प्रत्यर्पण करने से मना कर सकता है, विशेषकर अगर मामला राजनीतिक है या प्रत्यर्पित व्यक्ति को निष्पक्ष मुक़दमा/मृत्यु-दंड के दौरान प्रताड़ना का जोखिम हो। कई विश्लेषक यही कारण बताते हैं कि भारत शेख हसीना को तुरंत सौंपने के बजाय मानवाधिकार/राजनैतिक दृष्टिकोणों का हवाला दे सकता है।

4)प्रत्यक्ष अंतरराष्ट्रीय चुनौती कितनी सफल हो सकती है — वास्तविक परिदृश्य

अगर सुप्रीम कोर्ट भी सज़ा बरकरार रखे, तो सबसे पहले बांग्लादेशी कानूनी मार्ग (रिव्यू/सीरियस एपील) के सारे विकल्प खत्म होने चाहिए — तब भी बहु-अंतरराष्ट्रीय तंत्रों में सफलता की गुंजाइश सीमित और समय-सापेक्ष होगी।

UN विशेष प्रक्रियाएँ और मानवाधिकार संगठनों से राजनीतिक-कानूनी दबाव बनाया जा सकता है; पर इनका सीधा न्यायिक प्रभाव कम होगा।

ICC की संलिप्तता तभी संभव है जब राष्ट्रीय मुक़दमे को ‘आड़’/निष्पक्षता-युक्त न माना जाए; केवल तभी ICC क़दम उठा सकता है — पर ICC फैसले सज़ा पलटने जैसा नहीं करते, वे अलग क्रिमिनल जवाबदेही तंत्र हैं।

निष्कर्ष (संक्षेप में)

1.घरेलू अपील/उपचार पहले और अनिवार्य माना जाएगा — शेख हसीना के वकील सबसे पहले बांग्लादेश के उच्चतम न्यायालय में कानूनी लड़ाई जारी रखें, क्योंकि कई अंतरराष्ट्रीय तंत्र “domestic remedies” के निपटान पर ज़ोर देते हैं।

2.अगर सुप्रीम कोर्ट ने सज़ा बनाए रखी और घरेलू रास्ता बंद हो गया, तब भी विकल्प सीमित हैं: UN स्पेशल रिपोर्टर्स/मानवाधिकार तंत्र के पास शिकायत; ICC के समक्ष परिस्थितियाँ देखने हेतु संभावित प्रवर्तन-अनुरोध (लेकिन ICC सीधे मौत की सजा को उलटने वाला विकल्प नहीं है)।

3.प्रत्यर्पण का मसला राजनीतिक-कानूनी है — भारत के पास प्रत्यर्पण अस्वीकार करने के वैधानिक और राजनीतिक आधार मौजूद हैं, और अंतरराष्ट्रीय दबाव/मानवाधिकार कारणों से भारत तुरंत प्रत्यर्पण करे — यह निश्चित नहीं माना जा सकता।

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VIKAS TRIPATHI
VIKAS TRIPATHIhttp://www.pardaphaas.com
VIKAS TRIPATHI भारत देश की सभी छोटी और बड़ी खबरों को सामने दिखाने के लिए "पर्दाफास न्यूज" चैनल को लेके आए हैं। जिसके लोगो के बीच में करप्शन को कम कर सके। हम देश में समान व्यवहार के साथ काम करेंगे। देश की प्रगति को बढ़ाएंगे।
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