बेंगलुरु, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने संघ की 100 साल की यात्रा के विषय पर आयोजित सत्र ‘New Horizons’ में कई संवेदनशील सवालों का जवाब दिया। भागवत ने संघ के कानूनी दर्जे, पंजीकरण, और उस पर लगे प्रतिबंधों को लेकर सामने आए सवालों को क्रमवार रूप से सुलझाया।
मुख्य बात — पंजीकरण और कानूनी स्थिति
भागवत ने याद दिलाया कि संघ की स्थापना 1925 में हुई थी और पूछा कि क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि वे उसी शासन के साथ रजिस्टर होते जिनके खिलाफ उन्होंने काम किया। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद के कानून पंजीकरण को अनिवार्य नहीं मानते और इसलिए कई ऐसे निकाय हैं जो बिना पंजीकरण के भी मान्यता रखते हैं। उनका तर्क था कि कानूनी तौर पर संघ को वह दर्जा मिला है जो बिना रजिस्ट्रेशन वाले अन्य निकायों को भी मिलता है।
तीन बार प्रतिबंध — और अदालतों की भूमिका
भागवत ने स्वीकार किया कि आरएसएस पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया था, पर हर बार अदालतों ने वे प्रतिबंध हटा दिए और संघ को वैध संगठन के रूप में मान्यता दी। उनका तर्क था कि अगर संघ ही मौजूद न होता तो किस पर प्रतिबंध लगाया जाता — और इसी कारण सरकारों ने जो कदम उठाए, उसे अदालतों ने खारिज कर दिया।
Why Sangh is not a registered organisation? – Is it by chance, choice or to avoid legal issues?#RSSNewHorizons #RSS100Years pic.twitter.com/u9u5N6jAfy
— RSS (@RSSorg) November 9, 2025
राजनीतिक जुड़ाव और प्रधानमंत्री का तर्क
भागवत ने यह भी कहा कि वह संगठन उस छत्र संगठन का नेतृत्व करते हैं जिसे सत्तारूढ़ भाजपा का मूल निकाय माना जाता है — और बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीति में आने से पहले अपने सार्वजनिक जुड़ाव की शुरुआत इसी मंच से की थी। यही संबन्ध अक्सर चर्चा का विषय रहता है, जिसके बारे में उन्होंने अपने विचार साझा किए।
कर छूट और सरकारी-न्यायिक मान्यता
भागवत ने कहा कि आयकर विभाग और अदालतों ने भी यह नोट किया है कि आरएसएस व्यक्तियों का एक निकाय है और इसे कर से कुछ छूटें मिली हुई हैं — इसे भी उन्होंने संगठन की वैधता के पक्ष में तर्क के रूप में पेश किया।
मोहन भागवत के जवाबों का मूल संदेश यह रहा कि संघ अपने विचार, इतिहास और कानूनी स्थिति के साथ खुले रूप में सामने आया है — चाहे वह पंजीकरण का सवाल हो, लगे प्रतिबंधों का मामला हो या राजनीतिक सम्बन्धों का। उन्होंने बार-बार कानून और अदालतों के जरिए मिलने वाली मान्यता को अपने पाले में मजबूत तर्क के रूप में रखा।














