नई दिल्ली,— राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) 2 अक्तूबर 2025 को अपनी शताब्दी पूर्ण कर रहा है। शताब्दी कार्यक्रम के दौरान कई औपचारिक समारोह और स्मारक रिलीज़ किए गए, वहीं राजनीतिक विपक्ष ने संघ से जुड़े संवेदनशील सवाल उठाकर बहस तेज कर दी है।
केंद्र और संघ: स्मारक जारी, प्रधानमंत्री का समर्थन
शताब्दी के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में एक विशेष समारोह में आरएसएस के 100 वर्षों के अवसर पर डाक टिकट और स्मारक सिक्का जारी किया और संघ की सेवाभावना व राष्ट्रवाद की भूमिका की सराहना की। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने संघ के योगदान और उसके स्वयंसेवकों की बलिदान-गाथा का उल्लेख करते हुए कहा कि संघ ने देश सेवा में अनेक योगदान दिए हैं।
विपक्ष के सवाल– तीखी प्रतिक्रिया
वहीँ, आम आदमी पार्टी (AAP) के सांसद संजय सिंह ने संघ की शताब्दी पर X (पूर्व Twitter) पर एक वीडियो पोस्ट कर कई तीखे और सीधे प्रश्न उठाये — उदाहरण के तौर पर “100 सालों में क्या कभी कोई दलित/पिछड़ा/आदिवासी आरएसएस प्रमुख बना?”, “जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ सहयोग कर सरकार क्यों बनाई गई?”, “स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों की सूचना क्यों दी गई?” आदि सवाल। संजय सिंह की यह पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हुई और राजनीतिक वर्ग में चर्चा का विषय बन गई।
100 वर्ष पूरे होने पर RSS से कुछ तीखे , कड़वे और सच्चे सवाल।
100 सालों में 1 भी RSS प्रमुख दलित, पिछड़ा, आदिवासी क्यों नहीं बना ?
जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ मिलकर तुम्हारे आकाओं ने सरकार क्यों बनाई ?
आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारियों की मुखबिरी क्यों की ?
संघ के लोगों को… pic.twitter.com/OMvwM0ZeYA
— Sanjay Singh AAP (@SanjayAzadSln) October 1, 2025
कांग्रेस सांसद मणिकम तब्योर ने भी सार्वजनिक पोस्ट में आलोचना की और कहा कि अगर दिल्ली के सरकारी स्कूलों में आरएसएस को पाठ्यक्रम में शामिल कर पढ़ाया जाएगा तो इतिहास नहीं बल्कि प्रचार सिखाने का जोखिम होगा; उन्होंने उदाहरण देते हुए पूछा कि क्या नाथूराम गोडसे जैसे व्यक्तियों को ‘देशभक्त’ के रूप में पढ़ाया जाएगा और कहा कि बच्चों को ‘इतिहास’ चाहिए न कि ‘प्रचार’। इस तरह के रुख ने शैक्षिक पाठ्यक्रम और इतिहास शिक्षण पर बहस भी बढ़ा दी है।
So now Delhi schools will teach RSS as part of the curriculum? 🤔
What’s next — lessons on Nathuram Godse as a “patriot”?
RSS wants to rewrite history because it has none.
– Absent in the 1942 Quit India movement.
– Absent in the struggle against the British.
– But present when…— Manickam Tagore .B🇮🇳மாணிக்கம் தாகூர்.ப (@manickamtagore) October 1, 2025
ऐतिहासिक आरोप और संघ का इतिहास — सामान्य संदर्भ
विवादों में जिन ऐतिहासिक बिंदुओं का बार-बार उल्लेख हुआ है, वे लंबे समय से सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा रहे हैं — जैसे 1940s के दौरान संघ के कार्रवाई-रुख, स्वतंत्रता संग्राम में उसकी भूमिका, तथा राष्ट्रीय ध्वज (त्रिबंन) को लेकर विवाद। इतिहासकारों और दस्तावेजों में यह उल्लेख मिलता है कि आरएसएस ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग न लेने के बारे में नीति अपनाई थी और उसके कुछ रुखों पर आलोचना हुई है; साथ ही यह तथ्य भी बार-बार उद्धृत होता है कि आरएसएस के मुख्यालय पर राष्ट्रीय ध्वज लंबे समय तक नहीं लहराया गया — 1950 के बाद यह मुद्दा लंबे समय तक चर्चा में रहा। इन ऐतिहासिक दावों और घटनाओं का विस्तृत संदर्भ उपलब्ध है।
राजनैतिक परिदृश्य — क्या बदलता है?
आरएसएस की शताब्दी पर प्रधानमंत्री का समर्थन और विपक्ष की ज़ोरदार आलोचना — दोनों ने राजनीतिक मौके को और बढ़ा दिया है। केंद्र और कई राजनैतिक दल आरएसएस के योगदान को रेखांकित कर रहे हैं, जबकि विरोधी दल इसके इतिहास, विचारधारा और वर्तमान नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं। यह बहस न केवल ऐतिहासिक तथ्यों पर केन्द्रित है बल्कि शिक्षा, सिविक नैतिकता और सार्वजनिक विमर्श — तीनों के संदर्भ में चल रही है।
बहस जारी रहेगी
आरएसएस की शताब्दी केवल एक संस्थागत मील का पत्थर नहीं है; यह भारत के सार्वजनिक, शैक्षिक और राजनीतिक विमर्श के कई मुद्दों को सामने ला रही है। जहां एक ओर संघ अपनी 100-वर्षीय यात्रा का जश्न मना रहा है और उसे समर्थक प्रशंसा दे रहे हैं, वहीं विपक्षी आवाज़ें इतिहास, जवाबदेही और पाठ्यक्रम पर सवाल उठाकर यह दिखा रही हैं कि यह बहस अभी लंबी चलेगी। पाठक इस बहस का हिस्सा बने रहेंगे क्योंकि यह राष्ट्रीय पहचान, शिक्षा और लोकतांत्रिक सवालों को स्पर्श करती है।














