नोएडा प्राधिकरण में एक बार फिर भ्रष्टाचार और हेरफेर का ताजा नमूना सामने आया है। सेक्टर-145 के मेंटिनेंस प्लांट को हटाने और 27 दिन की सफाई के काम का भुगतान बढ़ाकर 3.5 करोड़ रुपये का बिल बनाने की कोशिश पकड़ी गई है। मामला सामने आते ही तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन कर दिया गया है।
कैसे शुरू हुआ खेल?
प्राधिकरण ने प्लांट हटाने और साफ-सफाई का काम एक निजी एजेंसी को दिया था। शर्त साफ थी — काम 27 दिन में यानी 30 अक्टूबर 2022 तक पूरा करना है। एजेंसी ने समय पर काम खत्म कर दिया और बोर्ड से अनुमोदन भी ले लिया। भुगतान भी तय अवधि तक सीमित रहना चाहिए था।
लेकिन चमत्कार तब हुआ जब फाइलों ने करवट बदली और 27 दिन का भुगतान 2024 तक खिंच गया। इस जादुई कलम से रकम भी कई गुना बढ़कर 3.5 करोड़ रुपये तक पहुंच गई।
कब और कैसे पकड़ा गया मामला?
वरिष्ठ अधिकारियों ने जब दस्तावेज़ों की पड़ताल की तो गड़बड़ी पकड़ी गई। साफ-सफाई जैसे मामूली काम के नाम पर करोड़ों की रकम बिलिंग में जोड़ दी गई थी। इसे ही कहते हैं — झाड़ू-पोंछा लगा, और खजाने का ताला खुला।
जांच समिति का गठन
मामले की गंभीरता देखते हुए सीईओ ने तीन सदस्यीय जांच समिति बनाई है।
•इसमें एक अपर परियोजना अधिकारी,
•एक एसीईओ,
•और एक वरिष्ठ अधिकारी को शामिल किया गया है।
@CeoNoida @myogiadityanath @noida_authority में 3.5cr का फर्जी भुगतान सेक्टर-145 प्लांट हटाने का काम 27 दिन में खत्म हुआ
कागज़ों में 2024 तक खींचकर करोड़ों का बिल बनाया
जांच के पुराने नुस्खा 3 सदस्यीय समिति!
सवाल ये है कि जब चोर ही चौकीदार हों तो सच्चाई कैसे बाहर आएगी? pic.twitter.com/zbg5UHQPaA
— PARDAPHAAS NEWS (@pardaphaas) September 4, 2025
समिति को कहा गया है कि जल्दी रिपोर्ट दें और दोषियों की पहचान करें।
मगर बड़ा सवाल यही है
नोएडा प्राधिकरण में पहले भी ऐसे कई मामले सामने आते रहे हैं। फर्जी बिल, हेरफेर, कागजी खेल — यह कोई नई बात नहीं। और हर बार जांच के लिए समिति गठित होती है, जिसमें अक्सर वही अफसर शामिल कर दिए जाते हैं जिन पर सवाल उठते रहे हैं। नतीजा यह होता है कि —
“चोर-चोर मौसेरे भाई” की कहावत चरितार्थ हो जाती है।
आम धारणा यह है कि जांच रिपोर्ट का नतीजा अक्सर वहीं निकलता है — “गंभीरता से देखा जाएगा” या “किसी की भूमिका साबित नहीं हुई।” यानी खेल जारी रहता है, केवल खिलाड़ी बदल जाते हैं।
प्राधिकरण का बयान
सीईओ डॉ. लोकेश एम ने कहा:
“समिति बनाई गई है, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई तय होगी।”
असली चुनौती
•क्या यह जांच वास्तव में किसी को कटघरे में खड़ा करेगी?
•या फिर हमेशा की तरह फाइलों की मोटी परत में सच दब जाएगा?
•जनता को राहत मिलेगी या फिर यह मामला भी “रिपोर्ट आने तक” की रस्म अदायगी में सिमट जाएगा?
3.5 करोड़ का यह फर्जी भुगतान मामला केवल भ्रष्टाचार की परत खोलता ही नहीं, बल्कि इस जांच तंत्र की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े करता है। जब जांच करने वाले ही सवालों के घेरे में हों, तो उम्मीद करना ही सबसे बड़ा धोखा लगता है।
आखिरकार, यह घटना एक बार फिर यही कहती है —नोएडा प्राधिकरण में फाइलें सिर्फ कागज़ पर नहीं चलतीं, बल्कि करोड़ों के नोटों पर दौड़ती हैं।