Wednesday, October 8, 2025
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के बीच वार्ता-शांतिपूर्ण समाधान और शांति बहाली पर दिया जोर

नई दिल्ली/कीव। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से टेलीफोन पर बातचीत की। यह अगस्त माह में दोनों नेताओं के बीच दूसरी बार संवाद था। इस वार्ता का महत्व इसलिए और बढ़ गया है क्योंकि रविवार को प्रधानमंत्री मोदी की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से चीन में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाक़ात प्रस्तावित है।

प्रधानमंत्री मोदी ने वार्ता के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा—

हमने चल रहे संघर्ष, उसके मानवीय पहलुओं और शांति एवं स्थिरता बहाल करने के प्रयासों पर विचारों का आदान-प्रदान किया। भारत इस दिशा में होने वाले सभी प्रयासों का पूर्ण समर्थन करता है।”

भारत की स्पष्ट स्थिति – “शांति ही एकमात्र समाधान”

प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने अपने बयान में कहा कि राष्ट्रपति जेलेंस्की ने यूक्रेन संघर्ष से जुड़े हालिया घटनाक्रमों पर विस्तार से जानकारी साझा की।
पीएमओ के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेनी राष्ट्रपति को फोन करने के लिए धन्यवाद दिया और संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता पर भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता को दोहराया। मोदी ने कहा कि भारत हर संभव सहयोग देने के लिए तैयार है ताकि जल्द से जल्द शांति और स्थिरता बहाल हो सके।

दोनों नेताओं ने भारत-यूक्रेन द्विपक्षीय साझेदारी की प्रगति की भी समीक्षा की और ऊर्जा, व्यापार, शिक्षा, तकनीक तथा मानवीय सहयोग जैसे क्षेत्रों में रिश्तों को और मजबूत बनाने के तरीकों पर चर्चा की। वार्ता में सहमति बनी कि दोनों देश संपर्क में बने रहेंगे और विभिन्न स्तरों पर संवाद बढ़ाएंगे।


जेलेंस्की: “मोदी के साथ बातचीत अत्यंत महत्वपूर्ण”

यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की ने भी सोशल मीडिया पर अपनी बात साझा की। उन्होंने लिखा कि उन्होंने वाशिंगटन में राष्ट्रपति ट्रंप और यूरोपीय नेताओं के साथ हुई हालिया बहुपक्षीय बातचीत के बारे में प्रधानमंत्री मोदी को अवगत कराया। यह वार्ता, उनके अनुसार, “वास्तविक शांति कैसे स्थापित हो सकती है” इस पर साझेदार देशों के बीच साझा दृष्टिकोण बनाने में महत्वपूर्ण रही।

जेलेंस्की ने रूस पर तीखा आरोप लगाते हुए कहा कि—

“लगभग दो सप्ताह का समय बीत चुका है, लेकिन मॉस्को ने कूटनीति की कोई तैयारी नहीं दिखाई। इसके बजाय, रूस ने नागरिक ठिकानों पर हमले किए हैं और दर्जनों निर्दोष लोगों की जान ली है। इस दुखद परिस्थिति में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पीड़ित परिवारों के प्रति व्यक्त संवेदना के लिए मैं उनका आभारी हूं।”


एससीओ शिखर सम्मेलन से पहले रणनीतिक संवाद

जेलेंस्की ने अपनी पोस्ट में यह भी कहा कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन से पहले भारत और यूक्रेन के बीच यह संवाद अत्यंत उपयोगी रहा।
उनके अनुसार—

इस युद्ध का अंत केवल तत्काल युद्धविराम और सार्थक शांति वार्ता से संभव है। जब हमारे शहर लगातार गोलाबारी की चपेट में हैं, तब तक शांति पर गंभीर चर्चा संभव नहीं है। भारत इस दिशा में अहम भूमिका निभा सकता है और शिखर सम्मेलन के दौरान रूस तथा अन्य देशों को उचित संकेत देने की स्थिति में है।”


द्विपक्षीय संबंधों में नए अवसर

जेलेंस्की ने आगे बताया कि दोनों नेताओं ने भविष्य में उच्चस्तरीय यात्राओं, संयुक्त अंतर-सरकारी आयोग की बैठक और अन्य सहयोगी कार्यक्रमों की तैयारियों पर भी चर्चा की।
उन्होंने कहा—

“हमारे द्विपक्षीय संबंधों में कई संभावनाएं हैं जिन्हें हम साकार कर सकते हैं। मुझे निकट भविष्य में प्रधानमंत्री मोदी से आमने-सामने मुलाक़ात की खुशी होगी।”

पृष्ठभूमि: 11 अगस्त को भी हुई थी बातचीत

गौरतलब है कि 11 अगस्त को भी प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच फोन पर बातचीत हुई थी। लगातार संवाद इस बात का संकेत है कि भारत यूक्रेन संकट पर सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है और सभी पक्षों के साथ संपर्क बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रहा है।


विश्लेषण: भारत की कूटनीति की संतुलित राह

भारत की भूमिका रूस-यूक्रेन युद्ध में अत्यंत संवेदनशील मानी जा रही है। एक ओर रूस भारत का पारंपरिक रक्षा और ऊर्जा साझेदार है, वहीं दूसरी ओर भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यूक्रेन के मानवीय संकट और शांति स्थापना के प्रयासों का समर्थन कर रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी का यह दोहराना कि “आज का युग युद्ध का नहीं है” भारत की कूटनीति का केंद्रीय संदेश बन चुका है, जिसे वैश्विक मंचों पर भी सराहा गया है।


कुल मिलाकर, प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जेलेंस्की के बीच यह बातचीत न केवल द्विपक्षीय संबंधों को नई दिशा देने वाली है, बल्कि रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत की सक्रिय मध्यस्थता और “शांति-राजनय” की नीति को भी और मजबूती प्रदान करती है।

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VIKAS TRIPATHI
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