देश के बहुचर्चित नीतीश कटारा हत्याकांड में दोषी करार दिए गए सुखदेव यादव को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में रिहा करने का आदेश दे दिया है। यह निर्णय न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की पुष्टि करता है, बल्कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र को लेकर एक महत्वपूर्ण विमर्श भी खड़ा करता है।
20 वर्षों की सजा पूरी, फिर भी रिहाई नहीं — सुप्रीम कोर्ट ने जताई कड़ी आपत्ति
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए साफ कहा कि सुखदेव यादव ने मार्च 2025 में अपनी 20 साल की सजा पूरी कर ली थी, ऐसे में उसे आगे हिरासत में रखना गैरकानूनी और अनुचित है।“अगर यही रवैया रहा, तो हर दोषी को जेल में ही मरना पड़ेगा”, — कोर्ट की सख्त टिप्पणी।
SRB की भूमिका पर तीखा सवाल — क्या कार्यपालिका न्यायिक आदेश को पलट सकती है?
कोर्ट ने सजा समीक्षा बोर्ड (Sentence Review Board – SRB) के फैसले को लेकर गंभीर सवाल उठाए। SRB ने जेल में ‘असंतोषजनक आचरण’ का हवाला देकर सुखदेव यादव की रिहाई की अर्जी खारिज कर दी थी।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने तीखा प्रतिप्रश्न किया:“SRB अदालत के आदेश के ऊपर कैसे बैठ सकता है? क्या यह कार्यपालिका का आचरण उचित है?”
कोर्ट की टिप्पणी में छुपा गहरा संदेश
इस पूरे प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से दो बातें स्पष्ट होती हैं:
कार्यपालिका द्वारा न्यायिक आदेश की अनदेखी संविधान की भावना के विपरीत है।
दोषी का आचरण, यदि न्यूनतम भी संतोषजनक हो और सजा पूरी हो चुकी हो, तो उसे अनिश्चितकाल तक जेल में रखना व्यक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध है।
दिल्ली सरकार और सुखदेव के वकील के बीच तीखी बहस
दिल्ली सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक ने तर्क दिया कि:“अपराध गंभीर है। आजीवन कारावास का अर्थ है, शेष जीवन तक जेल में रहना। स्वतः रिहाई नहीं हो सकती।”
वहीं, सुखदेव यादव की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ मृदुल ने दलील दी कि:“मेरे मुवक्किल ने 9 मार्च 2025 को अपनी 20 वर्षों की सजा पूरी कर ली है। उसके बाद उसे हिरासत में रखना किसी भी विधिक औचित्य से परे है।”
पीठ ने SRB की प्रक्रिया पर आश्चर्य जताया
कोर्ट ने कहा कि SRB ने केवल आंतरिक रिपोर्टों और जेल रिकॉर्ड के आधार पर किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता पर फैसला लेने की क्षमता नहीं रखती। यह अधिकार न्यायपालिका का है और कार्यपालिका को उसके आदेशों के अनुपालन हेतु बाध्य होना चाहिए।
पृष्ठभूमि: नीतीश कटारा हत्याकांड
2002 में नीतीश कटारा का अपहरण कर हत्या कर दी गई थी।
हत्या में दोषी विकास यादव (राजनीतिक रसूख वाला व्यक्ति), विशाल यादव, और सुखदेव यादव थे।
सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में विकास और विशाल को 25 साल, जबकि सुखदेव यादव को 20 साल की सजा सुनाई थी।
यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
यह निर्णय व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार (Article 21) की पुष्टि करता है।
यह सजा समीक्षा बोर्डों की सीमाओं को स्पष्ट करता है।
यह न्यायपालिका की सर्वोच्चता को संवैधानिक ढंग से पुनर्स्थापित करता है।
निष्कर्ष: न्याय और कार्यपालिका में संतुलन जरूरी
इस फैसले से यह स्पष्ट है कि किसी भी दोषी की सजा यदि पूरी हो चुकी हो, तो महज तकनीकी या प्रशासनिक कारणों से उसे बंदी बनाकर रखना संविधान के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है।“न्याय का अर्थ है समय पर न्याय। देर से मिला न्याय, अन्याय से कम नहीं।”
– सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी कार्यपालिका के लिए एक स्पष्ट संदेश है।