मुंबई: महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी भाषा विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। अब इस मुद्दे पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने खुला चैलेंज देते हुए विवाद को और भी गर्मा दिया है। उन्होंने हिंदी भाषी लोगों पर हो रहे हमलों पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अगर वास्तव में हिम्मत है तो उर्दू भाषियों पर हमला करके दिखाएं, सिर्फ हिंदी भाषियों को निशाना बनाना डरपोकपन है।
“अपने घर में तो कुत्ता भी शेर होता है”
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर अपनी पोस्ट में निशिकांत दुबे ने तीखे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए लिखा:“हिंदी भाषी लोगों को मुंबई में मारने वाले यदि हिम्मत है तो महाराष्ट्र में उर्दू भाषियों को मारकर दिखाओ। अपने घर में तो कुत्ता भी शेर होता है? कौन कुत्ता कौन शेर, खुद ही फैसला कर लो।”
उन्होंने यह बयान मराठी और हिंदी के बीच चल रहे राजनीतिक टकराव के संदर्भ में दिया है। दुबे ने अपनी बात को मराठी में भी साझा किया, जिससे यह साफ हो गया कि उनका संदेश सिर्फ एक वर्ग के लिए नहीं बल्कि व्यापक रूप से राजनीतिक संदेश देने के लिए था।
हिंदी भाषी लोगों को मुम्बई में मारने वाले यदि हिम्मत है तो महाराष्ट्र में उर्दू भाषियों को मार कर दिखाओ । अपने घर में तो कुत्ता भी शेर होता है? कौन कुत्ता कौन शेर खुद ही फ़ैसला कर लो
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) July 6, 2025
“मुंबई में हिंदी बोलना अब गुनाह?”
भाजपा सांसद यहीं नहीं रुके। उन्होंने इससे पहले एक और विवादास्पद तुलना करते हुए लिखा था:“मुंबई में शिवसेना, मनसे के राज ठाकरे और एनसीपी के पवार साहब जिस तरह हिंदी भाषियों को निशाना बना रहे हैं, उसमें और कश्मीर में कश्मीरी हिंदुओं को भगाने वाले आतंकियों – सलाउद्दीन और मसूद अजहर – और मुंबई में हिंदुओं पर अत्याचार करने वाले दाऊद इब्राहिम में क्या फर्क है?”
दुबे ने सवाल उठाया कि एक समुदाय पर उसकी भाषा के आधार पर हमला करना भी उसी प्रकार की भयावह मानसिकता का प्रतीक है, जो पहले धर्म या जाति के नाम पर अत्याचार करती रही है।
भाजपा नेताओं की तीखी प्रतिक्रिया
निशिकांत दुबे अकेले नहीं हैं जिन्होंने इस मुद्दे पर तीखा रुख अपनाया है। इससे पहले भाजपा नेता और मंत्री नितेश राणे भी हिंदी विरोध को लेकर शिवसेना (UBT) और मनसे पर निशाना साध चुके हैं। उन्होंने उर्दू भाषियों को लेकर कहा था,
“अगर हिम्मत है तो उर्दू बोलने वालों से हिंदी बुलवाकर दिखाओ।”
राणे ने ठाकरे बंधुओं पर हिंदू समाज को भाषा के नाम पर बांटने का आरोप लगाते हुए कहा था कि यह राजनीति अब सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की ओर बढ़ रही है।
पृष्ठभूमि: तीसरी भाषा के रूप में हिंदी का विरोध
इस पूरे विवाद की शुरुआत महाराष्ट्र सरकार के कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के फैसले से हुई थी। इस निर्णय के बाद शिवसेना (UBT) और मनसे ने इसे मराठी भाषा पर हमला बताया था। इसके विरोध में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक मंच पर आए और सरकार को घेरने लगे। अंततः उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने यह स्पष्ट किया कि हिंदी को अनिवार्य नहीं, बल्कि वैकल्पिक रखा जाएगा।
मुम्बई में शिवसेना उद्धव,मनसे राज ठाकरे और एनसीपी पवार साहब में और कश्मीर से कश्मीरी हिंदुओं को भगाने वाले सलाउद्दीन,मौलाना मसूद अज़हर तथा मुम्बई में हिंदुओं के उपर अत्याचार करने वाले दाउद इब्राहिम में क्या फर्क है? एक ने हिंदू होने के नाते अत्याचार किया दूसरे हिंदी के कारण…
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) July 6, 2025
राजनीति या भाषा की अस्मिता?
महाराष्ट्र में जारी यह भाषा विवाद अब केवल शिक्षा नीति या भाषा संरक्षण का मुद्दा नहीं रह गया है। यह बहस अब राजनीतिक अस्मिता, सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक संतुलन को गहरे स्तर पर प्रभावित करने लगी है। निशिकांत दुबे जैसे बयानों से माहौल और भी गर्माता नजर आ रहा है।