Tuesday, July 1, 2025
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HomeDelhi NCRहेडलाइन:“लोकतंत्र, लिस्ट और लिफाफा: अजनारा होम्स के ‘निर्वाचन तमाशे’ में पारदर्शिता गुमशुदा!”

हेडलाइन:“लोकतंत्र, लिस्ट और लिफाफा: अजनारा होम्स के ‘निर्वाचन तमाशे’ में पारदर्शिता गुमशुदा!”

नोएडा के प्रतिष्ठित अजनारा होम्स सोसायटी में एओएए चुनाव प्रक्रिया ने लोकतंत्र के मुँह पर ऐसा तमाचा जड़ा है, जिसकी गूंज सेक्टर-21 तक सुनाई दे रही है। चुनावी मैदान में 22 योद्धा उतरे, कुछ बुज़ुर्ग, कुछ महिलाएं और कुछ ‘आशान्वित आत्माएं’। सबने नियमों के तहत नामांकन भरा, लेकिन जैसा कि होता आया है – असली खेल तो रात के अंधेरे में शुरू हुआ।

“नो हेलमेट, नो फ्यूल” अब गुज़रे ज़माने की बात है, यहां तो हुआ – “नो दबाव, नो चुनाव!”

26 अप्रैल की एक ‘शांति बैठक’ में श्रीमान SS पांडेय और मार्गदर्शक दीपचंद जी ने लोकतांत्रिक सहमति की बात की, लेकिन लगता है चुनाव समिति ने इसे “सीधी सेटिंग और साइलेंट साइडलाइनिंग” का मंच मान लिया। श्री बंसल और श्री चंदन को पाँच-पाँच उम्मीदवार चुनने की ज़िम्मेदारी दी गई — लेकिन शायद भूल गए कि लोकतंत्र में चयन नहीं, चुनाव होता है!

फिर क्या हुआ?
मतलब साफ़ था – समर्थन दो, नहीं तो परिणाम भूल जाओ।

27 अप्रैल को क्लब में जो बैठक हुई, वह चुनाव कम, इन्वेस्टिगेशन रूम ज़्यादा लग रही थी — “पहले नाम वापसी दो, फिर बातचीत होगी!” यह दृश्य देख कर तो सीबीआई भी शरमा जाए!

घटनाक्रम यहीं नहीं थमा। 28 अप्रैल की देर रात, चुनाव समिति ने अपने कुछ ‘नायकों’ को भेजा — नहीं, वोट गिनने नहीं — एफिडेविट हथियाने! दरवाजे-दरवाजे जाकर “सहमति से नाम वापसी” का नया लोकतांत्रिक मॉडल प्रस्तुत किया गया। कुछ लोगों ने तो कह भी दिया — “अब तो नाम नहीं, आत्मसम्मान वापस ले लूं वही बहुत है!”

28 तारीख को परिणाम की उम्मीद में सभी टीवी से चिपके बैठे थे, लेकिन चुनाव समिति ने सिर्फ एक संदेश दिया — “ड्यू टू अनअवॉयडेबल रीजन, लिस्ट नहीं देंगे, चिंता मत करें, लोकतंत्र जीवित है!”

29 अप्रैल को आई लिस्ट और भी ज़्यादा मज़ेदार थी — जिन्होंने नाम वापस लिया था, वो विजेता घोषित कर दिए गए! मानो कोई परीक्षा में अनुपस्थित था, फिर भी टॉपर बन गया।

इस तमाशे का विरोध करते हुए श्री प्रदीप बंसल, श्री नीरज गुप्ता और श्रीमती रितु शर्मा ने स्पष्ट कहा — “यह लोकतंत्र नहीं, लिपिकीय लूट है!”

और अंत में:
अजनारा होम्स का यह चुनाव एक उदाहरण बन गया है कि कैसे “चुनाव प्रक्रिया” को “चुनावी प्रहसन” में बदला जा सकता है, और कैसे पारदर्शिता की जगह कांच नहीं, पर्दा डाल दिया जाता है।

एक अनुरोध:
चुनाव समिति से निवेदन है — अगली बार मतपेटियों की जगह कॉमेडी क्लब बुक करें, कम से कम लोग हँसते हुए हारेंगे!

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VIKAS TRIPATHI
VIKAS TRIPATHIhttp://www.pardaphaas.com
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