
गोरखपुर में वक्फ अधिनियम पर बैठक करने पहुंचे बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल ने सीधे कोलकाता की फ्लाइट पकड़ ली — ज़ुबानी। निशाने पर थीं ममता दीदी, जिनकी सरकार पर उन्होंने ऐसा शब्द बाण चलाया कि अगर जुबान तलवार होती, तो प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद TMC की मीटिंग नहीं, मीटिंग की मिट्टी पलीद होती।
डॉ. अग्रवाल का कहना था कि “पश्चिम बंगाल में विरोध नहीं हो रहा है, विरोध करवाया जा रहा है।” अब ये कौन करवा रहा है, ये बताने की जरूरत नहीं — क्योंकि बीजेपी की शब्दावली में ममता बनर्जी का दूसरा नाम ही है “साजिशों की सुप्रीमो”।
उन्होंने कहा कि ममता दीदी के हाथ में अब “सिर्फ 30% मुस्लिम वोट” ही बचा है — अब ये बात वो इतनी चिंता से कह रहे थे जैसे किसी पुराने कांग्रेसी को सत्ता छिन जाने का ग़म होता है।
“TMC = ‘तमीज़-मुक्त कांग्रेस'”
डॉ. अग्रवाल ने टीएमसी को बताया “मुस्लिम गुंडों की पार्टी”, और कहा कि ये लोग बंगाल में खुलेआम घूम-घूम कर “गुंडई की रामलीला” चला रहे हैं। लगता है बंगाल में अब दुर्गा पूजा से ज़्यादा चर्चा मुहर्रम की नहीं, माफिया की होती है।
उन्होंने आरोप लगाया कि ममता दीदी वक्फ अधिनियम को “वोटों की खाद” बनाकर “माइनॉरिटी की खेती” कर रही हैं। इस राजनीतिक फार्मिंग का पैटर्न कुछ यूं है — बोओ वक्फ, काटो वोट, बेचो हिंदू-मुस्लिम का झगड़ा।
“वक्फ की संपत्तियां: मुत्वल्ली का पारिवारिक मॉल?”
डॉ. साहब ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि देश में 4.5 लाख वक्फ संपत्तियां हैं, जिनकी आमदनी 12 हजार करोड़ होनी चाहिए, लेकिन होती है सिर्फ 163 करोड़। पूछिए क्यों? क्योंकि मुत्वल्ली लोग मैनेजर से मालिक बन चुके हैं। वक्फ की जमीनें अब सामाजिक उपयोग के बजाय “फैमिली इन्वेस्टमेंट प्लान” बन चुकी हैं।
मतलब, वक्फ की संपत्तियों पर जो बोर्ड लगना चाहिए था — “ग़रीबों के लिए आरक्षित”, वहां अब लिखा जा रहा है:
“मुत्वल्ली एंड संस – प्रॉपर्टी डीलर्स”
“कांग्रेस का मौन व्रत और मोदी की ‘मुखर नीति'”
बीजेपी नेता ने कांग्रेस पर भी पलटवार किया कि “2014 तक की सरकारें फाइलें पलटती रहीं, कार्रवाई नहीं की”। और अब जब वक्फ संपत्तियों की गिनती 8.72 लाख तक पहुंच गई है, तब भी 99.99% संपत्तियां “लूट का लोकसभा” बनी हुई हैं।
मोदी सरकार की तारीफ़ करते हुए उन्होंने कहा कि “यह सरकार मनमोहन की तरह नहीं कहती कि संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है, बल्कि कहती है गरीबों का है” — हालांकि, यहां भी “गरीब मुसलमान” को समझना पड़ेगा कि उन्हें किस खांचे में रखा गया है — वोट बैंक, संपत्ति लुटवाने वाला, या बस चुनावी जुमलों का पात्र?
वक्फ की ज़मीन अब धार्मिक नहीं, राजनीतिक जंग का मैदान बन चुकी है — जहां TMC और बीजेपी की ज़ुबानी तोपें दिन-रात दग रही हैं। और सच्चर कमेटी की रिपोर्ट? वह भी शायद अब वक्फ बोर्ड की किसी अलमारी में मुत्वल्ली की अलमारी समझ कर बंद पड़ी है।