
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने सोमवार को भारत की वैश्विक भूमिका, भाषा की अस्मिता, और सांस्कृतिक पुनर्जागरण पर महत्वपूर्ण विचार साझा किए। उन्होंने स्पष्ट कहा कि भारत दुनिया को कुचलने के लिए नहीं, बल्कि विश्व कल्याण के लिए जीता है। भारत का उत्थान किसी पर प्रभुत्व स्थापित करने के लिए नहीं, बल्कि सभी के भले के लिए होना चाहिए।
भारत बनाम इंडिया: नाम सिर्फ शब्द नहीं, अस्मिता का प्रतीक
होसबाले ने ‘इंडिया’ और ‘भारत’ के बीच जारी बहस पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जी-20 सम्मेलन और 26 जनवरी के निमंत्रण पत्रों में ‘रिपब्लिक ऑफ भारत’ लिखा गया, लेकिन अंग्रेजी में! उन्होंने सवाल उठाया – अगर हमारा नाम भारत है, तो हमें हर जगह भारत ही लिखना और बोलना चाहिए।
उन्होंने संविधान का उदाहरण देते हुए कहा –
“अंग्रेजी में ‘कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ इंडिया’ और हिंदी में ‘भारत का संविधान’, अंग्रेजी में ‘रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया’ और हिंदी में ‘भारत का रिजर्व बैंक’… ऐसा क्यों? सवाल उठना चाहिए।”
मुगल और अंग्रेजी प्रभुत्व पर चिंता, अतीत से सीखने पर जोर
दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि मुगल काल के दौरान शिक्षा, उद्योग, संस्कृति और स्वाभिमान का भारी नुकसान हुआ। हालांकि, उस समय भारतीयों को यह अहसास था कि मुगल अपनी संस्कृति और सोच में हमसे श्रेष्ठ नहीं हैं। लेकिन अंग्रेजों के समय में भारतीयों को ही यह लगने लगा कि अंग्रेज उनसे बेहतर हैं – यही मानसिकता आज भी बनी हुई है।
उन्होंने चिंता जताई कि आज भी अंग्रेजियत हमारे समाज में हावी है। अतीत से सबक लेना जरूरी है, लेकिन वर्तमान की जिम्मेदारी को कम नहीं किया जा सकता।
सनातन धर्म और संस्कृति से जोड़ना जरूरी
दत्तात्रेय होसबाले ने प्रयागराज महाकुंभ के दौरान भी कहा था कि धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए समाज, संत समाज और शासन की संयुक्त शक्ति जरूरी है। महाकुंभ सिर्फ एक धार्मिक मेला नहीं, बल्कि श्रद्धा, संकल्प और संस्कृति का महान पर्व है।
उन्होंने नई पीढ़ी को सनातन धर्म और संस्कृति से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि इसके लिए परिवार, समाज और धार्मिक संगठनों को मिलकर काम करना होगा। उन्होंने संत समाज और सामाजिक नेतृत्व से अपील की कि वे युवाओं को धर्म और संस्कृति की महत्ता से परिचित कराएं।
भारत की आत्मा को समझना होगा
दत्तात्रेय होसबाले का यह संदेश केवल नाम बदलने तक सीमित नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता, सांस्कृतिक चेतना और आत्मगौरव को फिर से जागृत करने का आह्वान है। भारत की पहचान सिर्फ भौगोलिक सीमाओं में नहीं, बल्कि उसकी सनातन संस्कृति, मूल्यों और विचारधारा में है।
“अगर भारत को विश्वगुरु बनाना है, तो हमें अपनी जड़ों से जुड़कर, अपने गौरव को पहचानकर, और अपनी संस्कृति को आत्मसात करके आगे बढ़ना होगा।”

VIKAS TRIPATHI
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