Thursday, July 17, 2025
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जम्मू-कश्मीर: आतंकवाद पीड़ित परिवारों को न्याय का पहला अहसास, 40 परिजनों को मिले नियुक्ति पत्र

बारामूला/अनंतनाग : जम्मू-कश्मीर के इतिहास में 13 जुलाई, 2025 का दिन आतंकवाद से पीड़ित परिवारों के लिए एक नई उम्मीद और न्याय की शुरुआत का प्रतीक बन गया। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने रविवार को बारामूला में आतंकवादी घटनाओं में मारे गए 40 नागरिकों के परिजनों को नियुक्ति पत्र सौंपे, और यह संदेश दिया कि “अब वो दिन चले गए जब आतंकियों के परिजनों को नौकरी मिलती थी, पीड़ित परिवारों को नहीं।”

यह कार्यक्रम केवल सरकारी नियुक्ति का औपचारिक आयोजन नहीं था, बल्कि उन सैकड़ों परिवारों की पीड़ा को पहचानने और सम्मान देने का एक ऐतिहासिक प्रयास था, जिन्हें दशकों तक उपेक्षित किया गया।

वादा, भरोसा और 15 दिनों में कार्रवाई
29 जून को अनंतनाग में उपराज्यपाल सिन्हा ने आतंकवाद पीड़ित परिवारों से मुलाकात कर भरोसा दिलाया था कि 30 दिनों के भीतर परिवार के सदस्य को नौकरी मिलेगी। महज 15 दिन में वादा निभाते हुए रविवार को उन्हें सरकारी नौकरियों की सौगात दी गई।

सिन्हा ने कहा कि

“यह सिलसिला यहीं नहीं रुकेगा – जब तक अंतिम पीड़ित परिवार को पुनर्वास, सम्मान और रोजगार नहीं मिल जाता, तब तक यह कार्य जारी रहेगा”

“जिन्हें भुला दिया गया था, अब उन्हें सम्मान मिलेगा”
कार्यक्रम के दौरान उपराज्यपाल ने भावुक होते हुए कहा:
“इन परिवारों को दशकों तक भुला दिया गया। न कोई उनकी कहानी सुनने आया, न उनके आंसू पोंछे गए।”
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा किए गए नृशंस हत्याकांडों को जानबूझकर दबा दिया गया था।

“यह सिर्फ नौकरी का कागज़ नहीं, यह न्याय का पहला दस्तावेज है,” उपराज्यपाल ने कहा।


90 के दशक की अधूरी एफआईआर और टूटी ज़िंदगियां
सिन्हा ने बताया कि 90 के दशक से जुड़े सैकड़ों मामले अब सामने आ रहे हैं, जिनमें से कई में एफआईआर तक दर्ज नहीं की गई थी। उन्होंने कहा कि:

कई पीड़ितों की जमीनें हड़प ली गईं,

संपत्तियां उजाड़ दी गईं,

और परिवार न्याय के लिए भटकते रहे।

अब सरकार ने हर जिले में हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं, और प्रशासन स्वयं पीड़ित परिवारों के दरवाजे तक जाकर पुनर्वास और सहायता सुनिश्चित करेगा।

“दोषियों को अब किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा”
एलजी मनोज सिन्हा ने सख्त लहजे में कहा,
“हमने तय किया है कि इन अपराधों में शामिल किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा।”
सरकार अब सक्रिय रूप से संपत्ति हड़पने वालों, हत्यारों और आतंक समर्थकों की पहचान कर, कानून के कठघरे में लाएगी।

इस ऐतिहासिक पहल के साथ जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने ‘पीड़ित नहीं, अपराधी डरे’ की दिशा में बड़ा कदम उठाया है।
नियुक्ति पत्रों के रूप में न्याय की जो लौ जली है, वह आने वाले दिनों में न्याय, पुनर्वास और आत्मसम्मान की रौशनी बन सकती है।

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VIKAS TRIPATHI
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