किसान आंदोलन: तीन कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए ऐतिहासिक किसान आंदोलन के आज पांच साल पूरे हो गए हैं। इस मौके पर संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने देशभर में विरोध-प्रदर्शन का ऐलान किया है। इसी कड़ी में SKM ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को संबोधित एक ज्ञापन तैयार किया है, जिसमें स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों (C2+50%) के आधार पर MSP को कानूनी दर्जा देने की मांग की गई है।
राज्य और जिला मुख्यालयों पर सौंपा जाएगा ज्ञापन
प्रदर्शन के बाद यह ज्ञापन राज्य राजधानी और जिला मुख्यालयों पर सौंपा जाएगा। MSP कानून के साथ किसानों ने अपनी अन्य प्रमुख मांगें भी दोहराई हैं, जिनमें शामिल हैं–
किसानों और खेत मजदूरों का कर्ज़ माफ़
बिजली बिल 2025 को वापस लेना
चार श्रम कानूनों को रद्द करना
SKM का कहना है कि सरकार ने लिखित वादे किए थे, लेकिन उन्हें पूरा नहीं किया गया।
क्यों खास है 26 नवंबर?
26 नवंबर वही तारीख है जब 2020 में किसानों का दिल्ली कूच शुरू हुआ था। यह आंदोलन:
380 दिनों तक चला
736 से अधिक किसानों की मौत हुई
और अंत में सरकार को तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े
अब पाँच साल बाद किसान संगठनों का आरोप है कि:
“सरकार ने MSP पर कानून और अन्य वादों पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया, इसलिए हमें फिर से प्रदर्शन करना पड़ रहा है।”
“एक बार फिर मजबूर” — SKM
राष्ट्रपति को भेजे गए मेमोरेंडम में SKM ने लिखा:“ऐतिहासिक किसान संघर्ष की पांचवीं वर्षगांठ पर देश के किसान और मजदूर फिर से विरोध के लिए मजबूर हैं, क्योंकि सरकार ने अपने वादे पूरे नहीं किए।”
किसान संगठनों का दावा है कि किसानों की आर्थिक स्थिति और खराब हुई है, खेती की लागत दोगुनी और जीवनयापन का खर्च कई गुना बढ़ गया है।
किसानों की नई मांगें भी शामिल
SKM ने अतिरिक्त मांगों की सूची भी दी है, जिनमें शामिल हैं:
मनरेगा में काम के 200 दिन और ₹700 दैनिक मजदूरी
डीएपी और यूरिया की उपलब्धता सुनिश्चित करना
बाढ़ और भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों को राष्ट्रीय आपदा घोषित करना
भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास कानून 2013 का कड़ाई से पालन
इसके अलावा SKM ने अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर 50% टैरिफ लागू करने की कड़ी आलोचना करते हुए इसे–“भारत की संप्रभुता पर हमला” बताया और सरकार से कड़ी प्रतिक्रिया की मांग की।
पांच साल बाद किसान आंदोलन की वापसी इस बात का संकेत है कि कृषि क्षेत्र की असमानताएँ, MSP और किसानों की सुरक्षा को लेकर असंतोष अब भी शांत नहीं हुआ है। आने वाले दिनों में सरकार का रुख तय करेगा कि यह विरोध एक संवाद में बदलता है या फिर बड़े आंदोलन का रूप लेता है।














